अप्रवासी सैम वर्मा कहीं पाँचवे धाम
के पाँचवे शंकराचार्य तो नहीं?
रामकिशोर पंवार ''रोंढ़ा वाला''
हिन्दू धर्म के प्रति इतना पागल होता है कि उसेे अपने अच्छे बुरे का ज्ञान तक नहीं होता है। लोगो के इसी पागलपन को भुनाने के लिए इस देश में कुछ पैसे वालो ने भगवान के नाम पर धंधा शुरू कर दिया है। आजकल भगवान के नाम पर मंदिर या ट्रस्ट बना कर उसकी आड़ में माल कमाने का लोगो को चस्का लग गया है। इस समय मध्यप्रदेश के बैतूल जिले में एक अप्रवासी भारतीय के मंदिर की आड़ में चलने वाले अनैतिक कार्यो को लेकर अयोध्या में भव्य राम मंदिर बनाने के लिए कृत सकंल्पीत भाजपा के पूर्व सासंद एवं प्रदेश भाजपा के कोषाध्यक्ष स्वर्गीय विजय कुमार खण्डेलवाल के बीच तन गई थी जो बाद में सुलह में तब्दील हो गई। अप्रवासी भारतीय सैम वर्मा द्घारा अपनी माता की स्मृति में बनाये गए रूकिमणी बालाजी मंदिर अपनी स्थापना के समय से ही विवाद का केन्द्र बना रहा। सबसे पहले विवाद उस समय उठा जब सैम वर्मा ने अपने जन्म स्थान बैतूल बाजार का नाम बदल कर उसे बालाजीपूरम करना चाहा। सैम की इस हरकत पर पुरा गांव सैम कें खिलाफ खड़ा हो गया। इसके बाद सैम वर्मा ने कुछ शंकराचार्यो को अपने नीजी चार्टर प्लेन से लाकर उनसे इसे भारत का पाँचवा धाम घोषित करवा लिया जबकि इस देश में केवल चार ही धाम है जिन्हे आदि शंकराचार्यो से मान्यता प्रदान की गई है। कुछ लोगो का तो आरोप था कि अपने पैसे के बल पर सैम वर्मा ने जब कुछ शंकराचार्यो से बालाजी पूरम को पांचवा धाम घोषित करवा लिया है ? अब वह आने वाले कल में शंकराचार्यो द्घारा घोषित इस तथाकथित पांचवे धाम का पांचवा शंकराचार्य तो नहीं बनना चाहता है.....? अगर वह ऐसा करता है भी तो उसे रोकने वाला कौन है ......? सूत्र बताते है कि सैम वर्मा ने कहने के लिए तो श्री रूक्मिणी बालाजीपूरम मंदिर को ट्रस्ट का रूप दिया है लेकिन इस ट्रस्ट में सैम वर्मा के परिवार के सदस्यों की संख्या सबसे ज्यादा है । मंदिर की स्थापना के बाद से आज तक मंदिर का हिसाब किताब सार्वजनिक रूप से घोषित नहीं किया जाना भी अपने आप में एक सवाल है जिसका जवाब किसी के पास नहीं है। मंदिर की प्राण प्रतिष्ठï के समय तो यह प्रचारित किया गया था कि मंदिर में आने - जाने वाले श्रद्घालु भक्तो के जूते चप्पल मंदिर ट्रस्ट परिवार के सदस्य नि:शुल्क रखा करेगे लेकिन अब तो जूते चप्पल तक रखने के पैसे वसूले जा रहे है। मंदिर परिसर की दुकानो से किराया से लेकर उनसे मंदिर के नाम पर अकसर जबरिया चौथ वसूली की जाना भी मंदिर के पवित्र मकसदो पर पानी फेरने का काम करती है। नेशनल हाइवे 69 से कुछ दुरी पर बने भी इस मंदिर के लिए बनी अधिकांश दुकाने राष्टï्रीय राजमार्ग पर अतिक्रमण करके बनाई गई है ऐसा आरोप अकसर लगते रहा है। मंदिर कैम्पस में श्रद्घालु भक्तो के साथ किया जाने वाला व्यवहार भी इस मंदिर की प्रसिद्घी में कालिख पोतने का काम कर रहा है। अभी तक इस मंदिर में लाखों श्रद्घालु़ भक्त अपनी उपस्थिति दर्ज करवा चुके है। दूर - दूर से लोग इस दक्षिण भारतीय शैली से बने मंदिर में अपनी आस्था के चलते खीचे चले आते है लेकिन यहाँ से जाने के बाद उनका अनुभव यहाँ की तस्वीर का दुसरा पहलूूू बयाँ करता है।
अमेरिका नागरिकता प्राप्त अप्रवासी भारतीय सैम वर्मा ने अपनी जननी स्वर्गीय श्रीमति रूक्मिणी देवी पति स्वर्गीय किशोरी लाल मेहतो की याद में अपनी जन्मभूमि बैतूल बाजार में जगतगुरू शंकराचार्यो द्घारा घोषित पाँचवा धाम बालाजीपुरम बनवाया था। इस धाम में भगवान रूक्मिणी बालाजी सहित हिन्दुओं के दर्जनो देवी देवीताओं के भव्य मंदिरों का निमार्ण किया गया है। अभी तक पिछले पाँच वर्षो में एक करोड़ से अधिक श्रद्घालु भक्त यहाँ पर अपनी उपस्थिति दर्ज करवा चुके है। करोड़ो की लागत से बने रूक्मिणी बालाजी मंदिर में सैम वर्मा अनुराधा पौड़वाल नाईट से लेकर विश्व सुदंरी युक्ता मुखी को इस मंदिर की चार दिवारी में लाकर इन फिल्मी सितारों एवं गायको की आड़ में लोगो को मंदिर की ओर आर्कर्षित करने का प्रयास किया गया जो सफल भी हुआ। आज इस बात में कोई संदेह नहीं कि इस मंदिर में लोगो का तमाम अटकलो - चर्चाओं एवं तकलीफो के बाद भी आना जारी है। अकसर लोग जब मंदिर आये तो जाते समय भगवान की दान पेटी में कुछ दान पुण्य करके जातें है।
इधर अंकल सैम वर्मा के जन्म स्थान बैतूल बाजार नगरपंचायत के अध्यक्ष संजय कुमार वर्मा कहते है कि सैम वर्मा को विवादों में बने रहना अच्छा लगता है। कुछ वर्ष पहले अंकल सैम वर्मा ने बैतूल नगर की कोठी बाजार स्थित मसिजद में कुछ लोगो के साथ जाकर उसकी साफ सफाई करनी चाही तो मुस्लीम बिरादरी ने इस बात का जबरदस्त विरोध किया। इन लोगो का कहना था कि मस्जीद में बिना बजू किये जाना गैर इस्लामिक है । इसी तरह अंकल सैम वर्मा ने बालाजीपुरम स्थित बालाजी मंदिर में क्रिसमस को मनाया तो कुछ हिन्दु संगठनो ने जोरदार आपित्त दर्ज की । इन लोगो का कहना है कि क्या किसी गिरजाघर मे राम जन्मोत्सव मनाया गया है जो हिन्दुओं के मंदिरो में क्रिसमस मनाया जा रहा है। अंकल सैम वर्मा ने अभी कुछ साल पूर्व अपने गृहग्राम बैतूल बाजार का नाम ही परिवर्तित करना चाहा जबकि बैतूल बाजार बैतूल जिले के एतिहासिक महत्व की दृष्टिï से तथा सबसे प्राचीन कृषि प्रधान गांव रहा है। इस गांव को तीन ओर से सापना नदी ने घेर रखा है। पूर्वोमुखी सापना इस गांव में ही जिस दिशा से आती है उसी दिशा में वापस लौट जाती है। गांव का नाम या परिवर्तित करके सैम वर्मा अपना कौन सा मातृभूमि प्रेम प्रदर्शित करना चाहते समझ के बाहर की बात है? सबसे कम उम्र के बैतूल बाजार के प्रथम नागरिक का दर्जा प्राप्त नगर पंचायत अध्यक्ष संजय कुमार वर्मा कहते है कि आज सैम वर्मा की उलजूल हरकतो की वजह से ही लगभग पुरा गांव उसका विरोधी बना हुआ है। सैम वर्मा को अनेक सवालो कटघरे में खड़ा करने वाले बैतूल बाजार के वाशिंदे आज तक यह नही समझ पाये है कि अंकल सैम आखिर बालाजी मंदिर की आड में इस गांव से चाहते क्या है? अपने ही गांव के लोगो पर ऊंगलियाँ उठाने वाले सैम वर्मा के एक भाई अप्रवासी पर कुछ वर्ष पूर्व बैतूल बाजार पुलिस ने किसी महिला के साथ बलात्कार का मामला दर्ज किया था। सैम वर्मा का व्ही.आई.पी. भवन जबसे बना है तब से आज तक किसी ना किसी विवाद को हवा देता रहा है। वैसे कहा जाता है कि अंकल सैम वर्मा ने दिल्ली की तिहाड़ा जेल में भी अपने जीवन के कुछ पल बीता चुके है।
बैतूल बाजार को मंदिरो का गांव भी कहा जाता है। गांव के अनेक बुजुर्ग व्यक्ति बताते है कि गांव के अनेक मंदिरो के रख रखाव के लिए कई साल पहले से कुछ सम्पन्न जमीदारों परिवारों के द्घारा सैकड़ो एकड़ कृषि योग्य उपजाऊ भूमि जो कि नेशनल हाइवे 69 से लगी हुई है वह दान में दी गई है। उक्त कीमती जमीन को सैम वर्मा मंदिर ट्रस्ट के नाम पर हड़पना चाहते है। कभी उक्त भूमि पर दशहरा मैदान बनाने का तो कभी केन्द्रीय विद्यालय खुलवाने का शिगुफा छोड़ते रहते है। इस समय अंकल सैम वर्मा बैतूल बाजार के अनेक जीर्ण शीर्ण होते जा रहे उनके पुश्तैनी मंदिरो की ओर ध्यान ना देकर रूक्मिणी बालाजी मंदिर की ओर ज्यादा ध्यान देने में लगे है। सैम वर्मा ने इस स्थान पर चित्रकुट से लेकर कटरा की माता रानी का डुप्लीकेट मंदिर बना रखा है ताकि जो लोग जम्मू कश्मीर ना जा सके वे बैतूल बाजार में ही वैष्णव देवी के मंदिर में देवी दर्शन कर चढ़ौती कर पुण्य लाभ बटोर सके. कुछ जानकार मानते है कि जिस तरह नकली माल बेचना कानून की न$जर में अपराध है ठीक उसी तरह का अपराध अंकल सैम वर्मा भी लाखों श्रद्घालु हिन्दु तीर्थ यात्रियों के साथ कर रहे है जो कि यहाँ पर चले आते है।
Saturday, December 25, 2010
No Dansh Basanti
''बसंती इन कुत्तो के सामने ही नाचना..........''
लेख :- रामकिशोर पंवार ''रोंढावाला ''
डाकु गब्बर सिंह वाली शोले फिल्म का वह डायलाग ''बसंती इन कुत्तो के सामने मत नाचना ......'' मुझे कुछ बेकुफी भरा लगता है. क्योकि आज के समय यदि गलती से भी बंसती ने कुत्तो के बजाय इंसान के सामने नाच दिया तो उसका क्या हाल होगा यह तो कोई नहीं बता सकता. कुत्तो और इंसान में अब ढेर सा फर्क दिखाई देने लगा है. आज के इंसान को सुबह एक रोटी का टुकडा नसीब नहीं होता है और कुत्ता मजे से सेंडवीज और बडा पाव को खाता है. यदि शेयी मार्केट के अनुसार कुत्ते और इंसान की मार्केट वेल्यू देखी जाये तो वह सबसे अधिक उछाल पर है. मेरा एक मित्र अकसर स्वंय के इंसान होने पर गालिया बकता रहता है. उसका कहना भी सच है कि आज के समय में कोई प्यार से दुलार करने को तैयार नहीं है चाहे वह बीबी हो या फिर कोई दिल लगी पड़ौसन ऐसे में वह कुत्ता तो सबसे ज्यादा खुश नसीब है जिसकी दिन में दस लोग दस बार पप्पी लेने को मरे जाते है. आज का इंसान कुत्ता हो गया है चाहे वह वासना को या हो या फिर दुर्र:वासना का ऐसे में वह इंसान कम जानवर ज्यादा दिखाई देने लगा है. इंसान के जानवर बनने के पीछे उनकी मानसिक कुंठा और अतृत्प यौन कुंठा कुछ हद तक जवाबदेह है. पालतु हो या गैर पालतु हिसंक - अहिंसक जानवरो के साथ रहते हुये इंसान भी जानवर जैसी सोच रखता है चाहे वह स्वछंद सैक्स के मामले में हो या फिर खानपान के मामले में...... वह अपने ऊपर किसी भी प्रकार की बंदिश नहीं चाहता है ऐसे में उसका स्वभाव इंसान से कम जानवर से अधिक मिलने लगा है. गब्बर सिंह अब भले ही बसंती को कहे कि ''नाच बसंती नाच , पैसे दुंगा पचास .....'' अब बेडिय़ो में जकड़े धर्मेन्द्र पा जी भले ही जोर - जोर से चीखे चिल्लायें कि ''बसंती इन कुत्तो के सामने मत नाचना .......'' अब लाफटर के कार्यक्रम में यदि इस लोकेशन पर धर्मेन्द्र पा जी को पलटवार करके पूना की गंगू बाई यह कह दे कि ''तू कौन होता है मुझे रोकने वाला .....? आज के इस हसीन अवसर पर मैं भला क्यूं नहीं नाचूंगी , आज पहली बार मुझे गब्बर सिंह जैसे महान व्यक्ति के सामने अपनी प्रतिभा को प्रदर्शन करने का मौका मिला है और उसे भी भी मैं गंवा दूं ऐसा मैं होने नहीं दुंगी......'' रामगढ़ की बसंती हो या फिर अलीगढ़ की यदि उसे मौका मिलता है कि वह गब्बर भैया के बुलावे पर उनके कार्यक्रम में जिसमें सांभा जी और कालिया जी जैसी जानी मानी महान हस्ती उपस्थित हो . ऐसे शुभ अवसर पर बसंती भलां अपने पावों को थिरकने से कैसे रोके पायेगी जब डी जे साऊण्ड पर गाना कुछ इस प्रकार बज रहा हो कि ''नाच मेरी बुलबुल की पैसा मिलेगा , कहां तुझे ऐसा मालदार मिलेगा ......'' आज की स्थिति में बंसती को तो नाचने से पहले यह सोच कर अपनी एनर्जी को बर्बाद नहीं करना चाहिये कि उसे किसके सामने नाचना है. आज का इसंन वासना का भुखा भेडिय़ा हो गया है वह किसी जवान हसीन और खुबसूरत कन्या को मल्लिका शेरवात की पोशाक में नाचता देखेगा तो उसके बदन के कपड़ो को तार - तार करके उसके नोच डालेगा और अपनी अंधी वासना का शिकार बना लेगा. आज की स्थिति में कुत्ता चाहे वह देशी हो या विदेशी वह किसी भी स्थिति में किसी की भी इज्जत का लूटेरा नहीं बना है. भले ही इज्जत के लूटेरो की तुलना समाज ने कुत्तो से कर डाली लेकिन कुत्ते ने इंसान से स्वंय को दूर रखा है. बंसती को किसी भी प्रकार के नाचने से पहले यह परख लेना जरूर चाहिये कि वह इंसान के बीच सुरक्षित है या कुत्तो के बीच क्योकि इंसान को कुत्ता बनते देर नहीं लगेगी और कुत्ते को इंसान बनने में सदिया गुजर जायेगी. मैं लेखक हूं इस नाते हर नये विषय को अपने अंदाज में पाठको के सामने लाकर अपनी उन भावनाओं को सामने लाने का प्रयास करता हूं जिसे उजागर नहीं किया जा सकता. उजागर करने और व्यक्त करने में सिर्फ इस बात का फर्क है कि भावना अभिव्यक्ति से जुड़ी होती है लेकिन जब कोई बात उजागर होती है तो निश्चीत तौर पर बवाल उठ खड़ा होता है. आज कल लोगो का इंसान से भरोसा उठता चला जा रहा है तभी तो वह विदेशी और देशी कुत्तो को पाल पोष कर अपने घर की चौकीदारी की बागडोर सौपे हुये है. मेरा एक मित्र को कुत्ते से बहुंत एलर्जी है वह अकसर मुझसे कहता रहता है कि ''मेरी किस्मत से तो अच्छी उस कुत्ते की किस्मत है जो मेरी ही बीबी की गोदी से बाहर नहीं निकलता और मुझे उसे छुना तो दूर बात तक करने का मौका तक नहीं मिलता ......'' यार मेरा है इसलिए उसकी पीड़ा को सुनना मेरा फर्ज है पर उसे यह कौन समझाये कि ''भैया यह सब कुछ कुत्ता पालने या खरीदने से पहले सोचना चाहिये था .....'' भला जो भी हो हमें किसी की दुखती नस को और जोर से नहीं दबाना चाहिये . चलते - चलते बसंत पर्व के अवसर पर मैं बस इतना जरूर कहना चाहूंगा कि ''बसंती को किसके सामने नाचना है यह उसका अपना नीजी मामला है लेकिन नाचने से पहले उसे ध्यान देना होगा कि वह खबर न बन जाये...''
Kaha Kho Gaye Mamu
घोषणावीर शिवराज सिंह की ढोल की पोल
न बन सके बहनो के भैया और न बन सके मामा
रामकिशोर पंवार ''रोंढ़ा वाला''
''चंदा मामा दूर के पुये पकाये पूर के ..'' इस फिल्मी गीत में छुपे भाव को समझाने का प्रयास किया गया है। रूठे बेटे को उसकी मां समझाती है कि उसके चंदा मामा दूर रहते है और वे जब आयेगें तो पुये पकायेगें ...... इस समय भी पूरे मध्यप्रदेश के जगत मामा बने शिवराज की बहने भी अपने अपाहिज , बीमार - लाचार बेटे - बेटियो को दिलासा दिलाती है कि उसका शिवराज मामा एक दिन जरूर आयेगा लेकिन सत्ता के मद में मस्त मामा को अपने भांजे भांजियो की तो दूर रही बहनो तक की खबर तक नहीं है। शादी के लिए जवान बेटियो की बात कहे या फिर गरीब विधवा हाथ मजुदरी करने वाली पौढ़ महिला की युवा विकलांग बेटी के एमबीए करने की अभिलाषा हर उम्मीदो पर पानी फिरने वाले मध्यप्रदेश के लाखो बेटे - बेटियो के जगत मामा कहलाने वाले शिवराज का इंतजार करते थक गये लोगो ने अब मौत को गले लगाना शुरू कर दिया है। अकेले आदिवासी बाहुल्य बैतूल जिले में मार्च - की तेज धुप में सौ से अधिक लोकसभा की चुनावी आम सभाओं में उपस्थित महिलाओं से हाथ ऊपर करवा कर स्वंय को उनका शिवराज भैया तथा गोदी में खेलने वाली बिटिया लेकर शादी योग्य कन्याओं का कन्यादान करवाने का जिम्मा लेने वाले मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज की घोषणाओं की पोल खोलती जिले में घटित घटनाओं को सुनने एवं पढऩे के बाद भी अगर जगत मामा को कम से कम से अपनी भांजी के कन्यादान के लिए चार हजार का कर्जा न चुकाने वाली बहन और बहनोई के अंतिम संस्कार में तो आना चाहिये था लेकिन शिवराज मामा तो चंदा मामा से भी दूर का हो गया। बैतूल जिले में घटित दर्दनाक घटनाओं के बाद तो भाजपाई रंग में रगे मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह को भीड़ - भाड़ भरे जलसो एवं सम्मेलनो में आई महिला और उनके बच्चो को देख कर उनके बहनो के भैया और बच्चो के मामा कहलाने का कोई हक नहीं बनता।
प्रमिला का मामा नहीं आया उसका कन्यादान करने और
शादी के लिए कर्जा लेने वाले मां - बाप ने आत्मदाह कर लिया......
घोषणावीर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह कन्यादान योजना के प्रति कितने सजग है यह तो खुदा ही जाने लेकिन बैतूल जिले की प्रमिला के लिए उसका शिवराज मामा उसके लिए कंस और शकुनी मामा से कम नहीं निकला....... आज इसी मामा के चक्कर में आदिवासी बाहुल्य बैतूल जिले के आठनेर थाना क्षेत्र के धामोरी निवासी रज्जड़ जाति की वृद्घ दम्पति ने अपनी शादी योग्य बेटी प्रमिला की शादी के लिए कर्ज को न चुका पाने की स्थिति में मिटटी का तेल डाल कर आत्मदाह कर लिया। बीती 16 मई को प्रमिला की शादी के लिए 4 हजार रूपये के कर्ज को चुकाने की चिंता इन दोनो वृद्घ दम्पति लक्ष्मण आत्मज पतिराम उम्र 55 वर्ष और उसकी जीवन संगनी शांता पत्नि लक्ष्मण उम्र 50 वर्ष ने अपने पति को जलता देख कर साथ जीने और साथ मरने का वचन निभाते हुये वह अपने पति से लिपट कर स्वंय को आग की दहकती अंगारो के बीच झोक डाला जिसके चलते वह बुरी तरह जल गई। दोनो वृद्घ दम्पति ने जिला चिकित्सालय में दम तोड़ दिया। चार बच्चो में तीन लड़कियां और एक लड़का है। सबसे बड़ी बेटी प्रमिला की हाल ही में 16 मई को शादी करने के लिए उन दोनो हाथ मजदुरी करने वाले परिवार के मुखिया और उसकी पत्नि को चार हजार का कर्जा जीने से बड़ा बोझ लगा और दोनो ने चारो बच्चो को अनाथ छोड़ कर अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली। बैतूल नगर में ही उन दोनो वृद्घ दम्पति का देशबंधु वार्ड के जागरूक लोगो ने एक ही चिता पर रख कर अंतिम संस्कार किया। बेटी की शादी के बाद दुसरे के घर साल भर के लिए नौकर रहे इस रज्जड़ जाति की वृद्घ दम्पति के द्घारा किया गया आत्मदाह मध्यप्रदेश की लाखो कन्याओं की शादी करने में अक्षम कन्याओं के मामा बने शिवराज सिंह की बहुचर्चित मुख्यमंत्री कन्यादान योजना के मुँह पर कालिख पोत गई क्योकि जहाँ एक ओर अभी हाल ही में मुख्यमंत्री कन्यादान योजना में शाहपुर जनपद में लोग दुबारा - तीबारा शादी कर रहे है वहीं दुसरी ओर प्रमिला के कन्यादान के लिये चार हजार रूपये के कर्ज के लिये उसके माता - पिता को आत्मदाह करना पड़ रहा है। पुलिस ने इस मामले को दर्ज तो कर लिया है पर वह आत्मदाह के लिए बाध्य करने के लिए किसके खिलाफ प्रकरण दर्ज करेगा। क्या इन दोनो गरीब वृद्घ दम्पति को आत्मदाह करने के लिए बाध्य कराने के लिए मुख्यमंत्री और उसकी कन्यादान योजना तथा उसके पालन के लिए अधिकृत अफसर दोषी नहीं है। बरहाल प्रमिला को आज भी शिवराज कंस मामा लगते है क्योकि कंस ने ही अपनी बहन और जीजा को जो यातनाये दी थी वह प्रमिला के माता - पिता से कम नहीं है। यह बात अलग है कि भगवान श्रीकृष्ण के माता - पिता ने आत्मदाह नही किया लेकिन प्रमिला के तो माता- पिता कलयुगी कंस मामा के चलते आत्मदाह को मजबुर हो गये।
मामा आये नहीं और भांजे तड़प - तड़प कर मर गये
इलाज के अभाव में 17 नवजात बच्चो की अकाल मौत
लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान प्रदेश के मुख्यमंत्री ने अपनी बहनो और भांजो को विश्वास दिलाया था कि वे उन्हे जब भी पुकारेगें उनका शिवराज भैया और मामा दौड़ा चला आयेगा। चुनावी वादो को अभी एक पखवाडा भी नहीं हो पाया और बैतूल जिले के विभिन्न प्राथमिक स्वास्थ केन्द्रो से रेफर सीरियस 17 नवजात बच्चो की इलाज के अभाव में अकाल मौत हो गई। जहाँ एक ओर इसदेश में नि:संतान माँ अपनी कोख में किलकारी के गुंजने के लिए मंदिरो और मजारो पर जाकर दुआये मांगती है वही दुसरी ओर एक ही दिन एक माँ के तीन नवजात शिशुओ ने चिकित्सको की लापरवाही के चलते तड़प - तड़प कर दम दोड़ दिया। बैतूल जिला चिकित्सालय में अभी तक एक पखवाड़े में 17 नवजात शिशुओ की अकाल मौत हो चुकी हैैजिसके पीछे का कारण यह बताया जा रहा है कि बैतूल जिला मुख्यालय के चिकित्सालय में पदस्थ शिशु रोग विशेषज्ञ डा अरूण श्रीवास्तव लम्बी छुटटï्ी पर चले गये। बैतूल जिला मुख्य चिकित्सालय में पदस्थ शिशु रोग विशेषज्ञ एवं सिविल सर्जन श्रीमति रश्मी कुमरा के पदस्थ रहने के बाद भी उनके द्घारा मात्र पर्ची के अभाव में आठनेर विकास खण्ड के रजोला ग्राम की आदिवासी महिला श्रीमति संध्या पत्नि मन्नू कुमरे ने आठनेर के सरकारी प्राथमिक स्वस्थ केन्द्र में तीन बच्चो को जन्म दिया जिसे कमजोर हालत में बैतूल जिला मुख्य चिकित्सालय रेफर किया गया। महिला किसी तरह अपने परिजनो के साथ उन एक साथ जन्मे तीनो बच्चो को लेकर तो बैतूल आ गई लेकिन यहाँ पर शिशु रोग विशेषज्ञ के अभाव तथा वर्तमान में सिविल सर्जन एवं शिशु रोग विशेषज्ञ डाँ श्रीमति रश्मी कुमरा की अखड़पना के चलते तीनो बच्चो का समय पर इलाज इसलिए नहीं हो पाया क्योकि अनपढ़ आदिवासी महिला अपने तीन बच्चो के नामो की अलग - अलग पर्ची नहीं बनवा पाई और उसके पति के पास ही वह पर्ची रह गई जो देर से जिला मुख्य चिकित्सालय पहँुचा। बेचारी एक ही पर्ची पर तीनो बच्चो का इलाज करवाने की तथा पर्ची के पति के पास रह जाने की भूल के चलते अपने तीनो नवजात शिशुओ से हाथ धो बैठी।
यह कोई पहली घटना नही है जब किसी मां के बच्चो की मौत हुई हो ...। बैतूल जिला मुख्य चिकित्साल में जिले भर के प्राथमिक एवं उप प्राथमिक स्वास्थ केन्द्रो से रेफर अधिकांश बच्चो की बैतूल तक आते - आते मौत हो जाती है जो बदकिस्मती से बैतूल अगर जिंदा पहुंच गया तो उसे डाक्टरो की लापरवाही एक दुसरे पर इलाज करने की जवाबदेही उन बच्चो की मौत का कारण बन जाती है। के तीन बच्चे इलाज के अभाव में काल के गाल में समा गये। वैसे देखा जाये तो आदिवासी बाहुल्य बैतूल जिले में स्थित जिला मुख्य चिकित्सालय बैतूल में बच्चो के लिए 5 लाख रूपये की लागत से विशेष कक्ष बनवाया गया है जिसमें इन पंक्तियो के लिखे जाने तक न तो कोई उपकरण है और न कोई नर्स या वार्डबाय। राज्य सरकार की अति महत्वाकांक्षी प्रसुति जननी योजना की पोल खोलती इन घटनाओं पर जिला मुख्य चिकित्सालय में बरसो से पदस्थ शिशु रोग विशेषज्ञ एवं सिविल सर्जन डां. श्रीमति रश्मी कुमरा का साफ शब्दो में कहना है कि मुझे सिविल सर्जन की जवाबदेही मिली है मैं उसके अलावा दुसरा कोई काम नहीं कर सकती। इधर जिला मुख्य चिकित्सा अधिकारी भी यही राग अलापते न$जर आते हैै। राज्य केमुखिया को इस प्रकार के घटनाओं के बाद तो स्वंय को उन गर्भवति बहनो का भाई तथा नवजात शिशुओ का मामा कहलाने का कोई हक नहीं बनता। बरहाल जो भी हो इस प्रकार की घटनाये बैतूल जिले के लिए शर्मसार है।
बहन परेशान हो गई भैया के चलते
पहँुची सीधे राज्य महिला आयोग के पास
अपने शिवराज भैया की बहुचर्चित कन्यादान योजना को लेकर अधिकारियो ने शिवराज सिंह की उन बहनो को भी प्रताडि़त करना नही छोड़ा जो कि सरकारी मोहकमें में अधिकारी के पद पर विराजमान है। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की अति महत्वपूर्ण मुख्यमंत्री कन्यादान योजना को उस समय ग्रहण लग गया जब मुलताई तहसील के दो अधिकारियो ने इस कार्यक्रम क निरस्त होने के पीछे एक दुसरे को जवाबदेह बताया। मुलताई की महिला एवं बाल विकास परियोजना अधिकारी श्रीमति मनोरमा येवले ने खुल कर इस कार्यक्रम के निरस्त होने को लेकर स्वंय को जनपद पंचायत अधिकारी की शिकायत राज्य महिला आयोग से करक सनसनी पैदा कर दी। महिला अधिकारी ने जनपद मुख्य कार्यपालन अधिकारी पर कई प्रकार के गंभीर आरोप लगाने वाली महिला अधिकारी श्रीमति मनोरमा येवले ने अपनी शिकायत में लिखा है कि कन्यादान योजना जनपद पंचायत की है जिसके निरस्त होने क लिए उसे दोष देना न्यायोचित नहीं हैै। श्रीमति येवले का यह भी आरोप है कि जनपद अधिकारी उसे सस्पैण्ड करवाने के बहाने ब्लैकमेल कर रहे हैै। बैतूल जिले की पहली महिला अधिकारी जिसने अपने आप को मानसिक रूप से प्रताडि़त किये जाने की राज्य महिला आयोग से शिकायत की है।
मामा ने जब भांजे के लिए कोई मदद नहीं की तो बहन ने
अपने जीगर के टुकड़े को आखिर दे दी किडनी
माँ तू कितनी अच्छी है , प्यारी - प्यारी है ओ माँ ....... इस फिल्मी गीत को सुनने के बाद हर किसी की आँखो के सामने अपनी माँ की तस्वीर उभर कर सामने आ जाती है। यह महिला भी शिवराज सिंह चौहान की बहन कहलाई जाती है क्योकि शिवराज सिंह कहा करते है कि प्रदेश की हर दुखियारी , गरीब , असहाय , बहनो का वह भैया है। इस बहन ने भी अपने भैया से लेकर सभी से मदद मांगी लेकिन उसे सभी जगहो से मदद के नाम पर जब दुत्कार मिली तो इस महिला ने अपनी वो मिसाल कायम की कि सुनने वाले दंग रह जाते है। पाथाख्ेाडा कोल संस्थान की उप नगरी शोभापुर कालोनी के कैलाश नगर में रहने वाली कलावति नरवरे ने अपनी कोख के लाल के लिए जब कोई किडनी का दानदाता न मिला तो स्वंय की किडनी देकर उसकी जान बचा ली। उमेश के लिए कलावति माँ के रूप में स्वंय आदिशक्ता स्वरूपा जगदम्बा बनी जिसने अपने लहू से अपने लाल को नया जीवन दे दिया। नागपुर के एक चिकित्सालय में अपनी किडनी देने के बाद लगातार सात घंटे तक बेहोश रही कलावति नरवरे किराड़ जाति की वह बहादुर महिला है जिसने अपने लाल के इलाज के लिए दर - दर की ठोकरे खाने के बाद भी हिम्मत नहीं हारी। करीब छै - सात माह से अपने छोटे बीमार लाड़ले के लिए अंत समय में किडनी देकर उसकी जीवन बचाने वाली माँ कलावति कहती है कि जब वह ठीक हो जायेगी तो अपने लाल को लेकर महाकाल के दर्शन के लिए उज्जैन जाएगी और मत्था टेक कर भगवान आशुतोष का आभार व्यक्त करेगी। नागपुर में अभी डाक्टरो की देख- रेख में पूर्ण स्वस्थ हो रहे बेटे को किडनी देने वाली इस माँ ने माँ की अभी तक की सभी परिभाषा को बदल कर उसका एक नया रूप प्रस्तुत किया है जिसका बखान भर करने से आँखो से झर - झर कर अश्रु धारा निकल पड़ती है। चंडीगढ़ से लेकर इन्दौर सहित कई महानगरो में अपने बेटे के लिए किडनी तलाशने वाली इस माँ ने भारतीय संस्कृति में नारी के दर्जे को नया आयाम दिया है। आज के युग में जब माँ अपने सौदंर्य और लोक लज्जा के डर से वैध - अवैध कोख में पलने वाले बच्चो का गला घोटने में पीछे नही हटती है ऐसे में कलावति का अपने बेटे के लिए किडनी का दान सचमुच वास्तव में एक अद्घितीय मिसाल है।
जननी सुरक्षा योजना का पैसा पाने के लिए
गोदी में नवजात ललना लिये भटकती मायें
मध्यप्रदेश सरकार की अति महत्वाकांक्षी जननी सुरक्षा योजना का पिछले एक माह से बजट नहीं आने तथा आने वाले दो माह तक उक्त योजना का पैसा न आने की सरकारी घोषणाओं के बाद भी अपने 15 दिन से दो महिने के नवजात ललना को गोदी में लिये उक्त पैसा को पाने के लिए जिला चिकित्सालय का चक्कर काटने वाली मांये अब असुरक्षित दिखाई देने लगी है। सरकारी चिकित्सालयो में प्रसव करवाने वाली माताओं एवं उन्हे प्रोत्साहित करने वाली महिलाओं को मिलने वाली अलग - अलग योजनाओं की राशी का अब तक आवंटन नहीं आने के कारण सौ से अधिक महिलाओं का रोज आना और फिर बैंरग वापस लौट जाना अपने आप में एक त्रासदी है। उल्लेखनीय है कि ग्रामिण क्षेत्र की महिलाओं को किसी भी सरकारी चिकित्सालय में प्रसव करवाने पर 14 सौ तथा शहरी क्षेत्र की महिलाओं को 1हजार रूपैया मिलना था लेकिन 31 मार्च के बाद चालू वर्ष का बजट जो कि 1 अप्रेल के बाद आ जाता है वह नहीं आने के कारण उक्त समस्या आ गई है। गोदी में बच्चा लिये माये और उन्हे उत्प्रेतिर करने वाली ग्रामिण क्षेत्र की महिलाये प्रति प्रसव 6 सौ तथा शहरी क्षेत्र की महिलाये प्रति प्रसव 200 रूपये पाने के लिए हर रोज जिला चिकित्सालय में आ धमकती है। कुछ महिलाओं को तो आने वाले महिनो की तारीख के चेक तक दे चुके है लेकिन खाता में पैसा न होने के कारण उनके चेक बाऊंस होने की शिकायते मिलना आम बात है। गोदी में अपने बच्चो को नौतपा की तपती धुप में लेकर गांवो से शहरो का चक्कर काटने वाली दर्जनो महिलाओं की आपबीती सुनने के बाद ऐसा लगता है कि मुख्यमंत्री की सरकारी योजनाओं का हश्र ठीक उसी मुहावरे की तरह हो गया कि जेब में चवन्नी नहीं और देने चले मोहल्ले को दावत......
बहनो के लिए पति की नसबंदी बनी आफत
पति ने यदि शक किया तो ........
बच्चे दो ही अच्छे लेकिन सरकारी उक्त फरमान के बाद जिसने भी उक्त सरकारी नारे पर भरोसा किया उसने बस यही कहा होगा कि हम पहले ही अच्छे थे....... पति - पत्नि के बीच का रिश्ता काफी नाजुक होता है। शक की हल्की सी सुई उन रिश्तो में दरार ला सकती है। पत्नि की नसबंदी हो और वह फेल हो जाये तो पत्नि पर पति को शक नहीं होगा लेकिन पति अगर नसबंदी करा ले और पत्नि गर्भवति हो जाये तो स्वभाविक है कि दोनो के बीच के जनम - जनम के रिश्तो में बहँुत लम्बी खाई आ सकती है। पाढऱ का चंदू बस इसी त्रासदी से गुजर सकता था लेकिन उसे अपनी पत्नि पर पूरा यकीन था तभी तो चार बच्चे के पिता चन्दू आत्मज मानू ने 25 दिसम्बर को पाथाखेड़ा में आयोजित पुरूष नसबंदी शिविर में अपना आपरेशन करवा लिया था। वर्ष 2006 एवं 2007 गुजर जाने के बाद जब उसकी पत्नि मां नहीं बनी और उसकी नियमीत माहवारी होते रही तब अचानक ऐसा क्या हो गया कि उसके पांव भारी हो गये। बेचारे चन्दू ने अपनी समस्या को लेकर चिकित्सा अधिकारी से लेकर अपर कलैक्टर तक के चक्कर काटे लेकिन कहीं से न्याय नहीं मिला। एक दिन अचानक अपर कलैक्टर को चन्दू उसके कार्यालय के बाहर पुन: मिला तो उसने अपनी वहीं समस्या बताई। अपर कलैक्टर की पहल पर चन्दू का मेडिकल परीक्षण हुआ जिसने उसकी नसबंदी को फेल होने की बात सामने आ गई। चन्दू की पत्नि को खबर लिखे जाने तक तीन माह का गर्भ है वह पांचवा बच्चा नहीं चाहता लेकिन उसकी मौत का कारण भी नहीं बनना चाहता। यदि चिकित्सक आज से तीन महिने पहले उसकी पत्नि को माहवारी न होने पर उसे लेकर आये चन्दू की समस्या का निराकरण कर देते तो शायद चन्दू पांचवे बच्चे का बाप नहीं बन पाता लेकिन सरकारी लटके - छटको से हैरान - परेशान चन्दू अपनी नसबंदी के फेल हो जाने पर अब न्यायालय की शरण लेगा। हाथ मजदुरी करने वाले चन्दू की ओर से अब इस बारे में जिला न्यायालय में क्षतिपूर्ति तथा अन्य मामला डालेगा। उसे वकीलो की सलाह पर सरकार के खिलाफ केस डालने से कुछ रूपयो की मिलने की उम्मीद है। इधर चिकित्सकों ने चन्दू की नसबंदी फेल हो जाने का ठीकरा भी उसी के सर पर फोड़ डाला है। चिकित्सको का कहना था कि आपरेशन होने के तीन महिने बाद उसने अपना ब्लड टेस्ट नहीं करवाया इसलिए गलती उसकी ही है। अब चिकित्सको को कौन समझाये कि नसबंदी तीन महिने में नहीं बल्कि तीन साल बाद फेल हुई है। अगर उसकी नसबंदी तीन महिने में फेल हो जाती तो उसकी पत्नि के पांव मार्च 2006 में भारी हो जाते लेकिन उसके पांव तो मार्च 2008 में भारी हुये है।
बैतूल जिले में वैसे भी पुरूष बहँुत कम नसबदी करवाते है और जो करवा लेते है उनका हाल चन्दू जैसा ही होता है। इस जिले में इस वर्ष यह चौथा मामला है जब कोई पुरूष अपनी नसबंदी के फेल होने का मामला जनप्रकाश में लाया है। इसके पूर्व प्रभात पटटïï़्न ब्लाक के सेंदुरजना निवासी कैलाश पिता दशरथ साहू की शिकवा - शिकायत भी कुछ इसी प्रकार के नारो एवं स्लोगनो के खिलाफ है। बेचारा कैलाश हम दो हमारे दो , तीसरा होने न दो के चक्कर में पड़ कर आज से ढाई साल पहले अपना नसबंदी आपरेशन करवा लिया था। अब उसकी पत्नि को छै माह का गर्भ है। बेचारा हाथ मजदुरी का काम करने वाला कैलाश अपनी पत्नि के प्रति समर्पित है इसलिए वह अपनी पत्नि पर शक - संदेह न करके उसने स्वंय पहले अपने आप को ही इसके लिए दोषी मान कर स्वंय की जाँच करवाई तो पहले तो उसे इतने लटके - छटके खाने पड़े की वह हैरान एवं परेशान हो गया । काफी भागा दौड़ी के बाद डाक्टरो ने स्वीकार किया कि उसका नसबंदी का आपरेशन फेल हो गया। पहले से ही तीन बच्चो का बाप कैलाश अब चौथा बच्चा नही चाहता लेकिन उसकी पत्नि के गर्भ में अधजन्मे शीशु की हत्या का वह पाप भी अपने सर नहीं लेना चाहता। पेशोपश में पड़ा सरकार के भरोसे पर विश्वास करने वाला कैलाश के लिए तो बस अब यही गाना उचित होगा कि क्या मिल गया सरकार हमें नसबंदी करवा के ---
निराश्रीत किरण को कोसो दूर तक
आशा की एक किरण दिखाई नहीं दे रही........
आमतौर पर कहा जाता है कि ''पूत के पाव पालने में दिखाई देते है..'' ! किरण के पाव तो बचपन से पोलियो की भेट चढ़ जाने के बाद भी उसने अपने पैरो पर खड़े होकर आसमान की उस मंजील को छुना चाहा जहां तक पहुंच पाने की कोई कल्पना भी नहीं कर सकता। बैतूल जिला मुख्यालय की ग्राम पंचायत रोढ़ा की किरण मात्र एक साल की उम्र में ही अपने पिता को खो देने के बाद हाथ मजदुरी करने वाली अपनी बेवा माँ इंदु बाई पंवार के पसीने से अपने सपनो को साकार करने के लिए बिना रूके पढ़ाई करते आज उस मुकाम तक पहुंचने के पहले ही लडख़ड़ा कर गिरने जा रही है। बीएससी की परीक्षा अव्वल दर्जे से उत्तीर्ण इस विकलांग छात्रा का इसी महिने इन्दौर में एमबीए कोर्स के लिए चयन हो गया। अब उसे किसी भी सूरत में एडमीशन फीस के लिए 30 हजार रूपये तथा प्रतिवर्ष दो लाख पच्चीस हजार रूपये की मदद की आवश्क्यता है लेकिन उसकी मदद करने को कोई भी तैयार नहीं। भगवा रंग में रंगी भाजपा सरकार के मुख्यमंत्री अपनी प्रतिभावान लड़कियो को मदद करने की शासकीय घोषणाओं पर यदि अमल करते तो किरण की सपनो की आशा कोसो दूर न$जर नही आती। 30 मई तक उस विकलांग किरण को 30 हजार रूपये की मदद की त्वरीत जरूरत है लेकिन उसकी सभी जनप्रतिनिधियो एवं सरकारी अधिकारियो तक की गई फरियाद पर मदद मिलना तो दूर दुत्कार मिलती चली आ रही है। जिले के नवनिर्वाचित सासंद हेमंत खण्डेलवाल के पूज्य पिताजी एवं जिले के पूर्व सासंद स्वर्गीय विजय खण्डेलवाल '' बाबू जी'' के अधूरे सपनो को पूरा करने का अपना रटा - रटाया डायलाग बोलने वाले इस युवा सासंद को अपनी सासंद नीधि दस लाख रूपये की मदद की घोषणा करने के लिए पैसा है , लेकिन में नही है एमबीए करने की उम्मीद रखने वाली किरण के लिए चार आना भी नही.......! जहां एक ओर जनप्रतिनिधियो को अपने चाटुकारो एवं भाट - चारणो की मदद के लिए स्वेच्छा अनुदान का लाखो रूपैया है वही दुसरी ओर प्रतिभावान लड़की अपने उज्जवल भविष्य को साकार करने के लिए फूटी कौड़ी का न होना अपने आप में ही एक ऐसी शर्मसार घटना है कि इस खबऱ को पढऩे वाला ही अपने आप में घृणा इसलिए महसुर करेगा कि क्या इसी दिन को देखने के लिए प्रदेश में सुश्री उमा भारती ने भगवा झण्डा फहराया था। मध्यप्रदेश के घोषणा वीर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की खोखली साबित हो रही घोषणाओं पर किरण की आशा की बुझती किरण एक करारा तमाचा मारती है। बैतूल जिले के ज्ञानपांडे अधिकारी किरण को ही मदद करने के बजाय उसकी अभिलाषो का ही गला घोटने का काम करने लगे है। बात चाहे जिला कलैक्टर की हो या सहायक आयुक्त की दोनो के पास गरीब - निराश्रित किरण की मदद की गुहार पर तरह - तरह के तर्क - कुतर्क है। दोनो अधिकारी स्वंय मुख्यमंत्री की उस घोषणा की पोल खोलने का काम कर रहे है जिसमें यह कहा गया कि गरीब - किसान - मजदुर - निराश्रीत की बेटी की पढ़ाई से लेकर सगाई तक का खर्चा सरकार वहन करेगी। प्रतिभावान किरण की मदद के लिए तथाकथित समाजसेवा का दंभ भरने वाले संगठन से लेकर समाजसेवी तक दुम छुपाते फिर रहे है। जिले के विधायक यहां तक की इस विकलांग किरण के स्वजाति संगठन और उससे जुड़े धन्नासेठ लोग तक उसके सपनो को पूरा करने का बीड़ा उठाने को तैयार नहीं है। अपने जीजा के पास रह कर अपनी अभिलाषो को पूर्ण रूप देने के लिए किसी मददगार की राह देखती किरण को अखबारो में अपनी मदद के किस्से छपवाने वाले नाम और चेहरा छपवाने वाले नेता - अभिनेता भी कोसो दूर तक दिखाई नहीं पड़ रहे है। बैतूल जिले में महिला उत्थान से लेकर बालिकाओं और अन्य कार्य योजनाओं के नाम पर अरबो -खरबो की देशी - विदेशी मदद पाने वाले स्वंयसेवी संगठन भी मदद के नाम पर किरण से बदतï्र स्थिति में अपाहिज दिखाई पडऩे लगे है।
शिवराज की भांजियो के दांत पीले है
इसलिए उनके हाथ पीले नहीं हो पायेंगें ...!
शादी - विवाह का मौसम आया और चला भी गया....... इस बार भी सीवनपाट नामक उस गांव में एक बार फिर भी न तो ढोल बजे और न कोई शहनाई गुंजी ....... इसके पीछे जो भी कारण हो पर सच्चाई सोलह आने सच है कि इस गांव की लड़कियो के दंातो पर छाए पीलेपन को कोलेगेट से लेकर सिबाका ....... यहाँ तक की डाबर लाल दंत मंजन तक दूर नहीं कर पाया है । यह अपने आप में कम आश्चर्य जनक घटना नही है कि देश - दुनिया की कोई दंत मंजन कंपनी सीवन पाट गांव की उन युवतियों के चेहरो पर मुस्कान नहीं ला सकी है जिनके दांत पीले होने की वज़ह से उनके हाथ पीले नहीं हो पा रहे है । दंातो की समस्या पर आधारित उस गांव के हेडपम्प से निकलने वाले तथाकथित फ्लोराइड़ युक्त पानी के पीने से आंगनवाड़ी कार्यकत्र्ता मीरा पत्नि शिवजी इवने एक हाथ से विकलंाग बन चुकी है। एक हाथ से काम ही नहीं हो पाने के कारण मीरा अपने पीड़ा को अपने गिरधर गोपाल को भी गाकर - बजा कर नहीं सुना सकती है। अपने एक कम$जोर हाथ को दिखाती मीरा इवने रो पड़ती है वह कहती है कि साहब जब हाथ ही काम नहीं कर पा रहा है तब दांत के बारे में क्या करू....... ! काफी शिकवा - शिकायते करने के बाद लोक स्वास्थ यांत्रिकी विभाग के द्घारा उक्त हेड पम्प को बंद किया गया। बैतूल से आठनेर जाते समय ताप्ती नदी के उस पार बसे सीवनपाट नामक आदिवासी बाहुल्य गांव मूसाखेड़ी ग्राम पंचायत के अन्तगर्त आता है। इस गांव के बंद किये गये हेडपम्प के पानी पीने से के पानी की व$जह से अकेली मीरा ही विकलांग नहीं है उसकी तरह कक्षा 9 वी में गांव से 6 किलो मीटर दुर बसे कोलगांव में पढऩे जाने वाली गांव कोटवार हृदयराम आत्मज राधेलाल की बेटी रेखा आज भी बैसा$खी के सहारे गांव से पैदल ताप्ती मोड़ तक आना- जाना करती है। प्रतिदिन बस से किराया लगा कर स्कूल पढऩे जाने वाली रेखा की हिम्मत को दांद देनी चाहिये क्योकि उसने विकलांगता को चुनौती देकर अपनी पढ़ाई को जारी रखा। अनुसूचित जाति की कक्षा 9 वी की इस विकलांग छात्रा कुमारी रेखा के पिता हृदयराम अपनी पीड़ा को व्यक्त करते समय रो पड़ता है वह बताता है कि '' साहब मेरी बेटी कन्या छात्रावास बैतूल में पढ़ती थी लेकिन वह इस पानी के चलते विकलांग बन गई और बीमार रहने लगी जिसके चलते वह एक साल फेल क्या हो गई उसे छात्रावास से छात्रावास अधिक्षका ने निकाल बाहर कर दिया मैंने काफी मन्नते मांगी लेकिन मेरी कोई सुनवाई नहीं हुई ...... ! '' हालाकि दांत के पीले होने की त्रासदी से रेखा भी नहीं बच पाई है। गांव में यूँ तो फ्लोराइड़ युक्त पानी ने कई लोगो को शारीरिक रूप में कम$जोर बना रखा है। 34 साल की देवला पत्नि राजू भी अपने पीले दांतो को दिखाती हुई कहती है कि मेरी शादी को 20 साल हो गये उस समय से मेरे दांत पीले है आज मैं हाथ - पैर से कम$जोर हँू आज मेरे पास कोई काम धंधा नही है....! गांव के स्कूल के पास रहने वाली इस आदिवासी महिला के 4 बच्चे है जिसमें एक बड़ी लड़की की वह बमुश्कील शादी करवा सकी है......! पथरी का आपरेशन करवा चुकी देवला और उसके सभी बच्चो के दांत पीले है।
उस गांव की युवतियाँ अपने भावी पति के साथ सात जन्मो का साथ निभाने के लिए दिन - प्रति दिन अपने यौवन को खोकर बुढ़ापे की ओर कदम रख रही है लेकिन इन पंक्तियो के लिखे जाने तक कोई भी इन युवतियों से शादी करने को तैयार नहीं है। इस गांव की फुलवा अपनी बेटी की दुखभरी दांस्ता सुनाते रो पड़ती है वह कहती है कि ''साहब इसमें हमारा क्या दोष ......... ! इस गांव के पानी ने हमें कहीं का नहीं छोड़ा है . मेरी ही नहीं बल्कि इस गांव की हर दुसरी - तीसरी लड़की के हाथ सिर्फ इसलिए पीले नहीं हो पा रहे है क्योकि उनके दांत पीले है.......! '' माँ सूर्य पुत्री ताप्ती नदी का जब यह हेड पम्प नहीं खुदा था तब तक पानी पीने वाले गांव के भूतपूर्व पंच 57 वर्षिय बिरजू आत्मज ओझा धुर्वे कहता है कि ''साहब उस समय हमें कोई बीमारी नहीं हुई न दांत पीले हुये न हाथ - पैर कमज़ोर हुये ........! पता नहीं इस गांव को इस हेड पम्प से क्या दुश्मनी थी कि इसने हमारे पूरे गांव को ही बीमार कर डाला...... .!'' मूसाखेड़ी ग्राम पंचायत के इस गांव में बने स्कूल में पहली से लेकर पाँचवी तक कक्षाये लगती है। सीवनपाट के स्कूल में पहली कक्षा पढऩे वाली पांच वर्षिय मनीषा आत्मज लालजी के दांत पीले क्यो है उसे पता तक नहीं ..... मँुह से बदबू आने वाली बात कहने वाली शिवकला आत्मज रामचारण कक्षा दुसरी तथा कंचन आत्मज शिवदयाल दोनो ही कक्षा दुसरी में पढ़ती है इनके भी दांत पीले पड़ चुके है। 6 वर्षिय प्रियंका आत्मज पंजाब कक्षा दुसरी , 7 वर्षिय योगिता आत्मज रियालाल कक्षा तीसरी की छात्रा है. इसी की उम्र की सरिता आत्मज मानक भी कक्षा तीसरी में पढ़ रही है उसके पीले दांत आने वाले कल के लिए समस्या बन सकते है। गांव की कविता आत्मज लालजी सवाल करते है कि ''साहब कल मेरी बेटी शादी लायक होगी तब उसे देखने वाले आदमी को जब पता चलेगा कि इसके दांत पीले है तथा उसके मँुह से बदबू आती है तब क्या वह उससे शादी करेगा....ï? '' विनिता आत्मज सुखराम कक्षा तीसरी की तथा कक्षा पांचवी की प्रमिला चैतराम भी अपने दांत दिखाते समय डरी - सहमी से सामने आती है। लगभग तीन घंन्टे तक इस गांव की पीड़ा को परखने गए इस संवाददाता को ग्रामिणो ने बताया कि 290 जनसंख्या वाले इस गांव में सबसे अधिक महिलायें 151 है. 139 पुरूष वाले लगभग 60 से 65 मकान वाले इस गांव में जुलाई 2006 को स्कूली मास्टरो से करवाये गये सर्वे के अनुसार इस गांव में 54 बालिकायें 44 बालक है जिनकी आयु 1 से 14 वर्ष के बीच है. इन 54 बालिकाओं में 49 के दांत पूरी तरह पीले पड़ चुके है। इसी तरह गांव की 151 महिलाओं में से 99 महिलाओं के दांत पीले है। शेष 52 महिलाओं की उम्र 45 से अधिक है जिनके दांतो पर उक्त फ्लोराइड़ युक्त पानी कोई असार नहीं कर सका है. जिला प्रशासन द्घारा लगभग 5 साल पहले ही उक्त फ्लोराइड़ युक्त पानी वाले हेड पम्प को बंद करवा कर उसके बदले में दो फ्लांग की दूरी पर एक हेड पम्प तो खुदवा दिया लेकिन उस हेडपम्प से भी फ्लोराइड़ युक्त पानी का निकलना जारी है क्योकि जिन लड़कियो की उम्र पाँच साल है जिनके दँुध के दांत टूट कर नये दांत उग आये है वे भी पीले पड़ चुके है। आंगनवाड़ी पढऩे वाली अधिकांश बालिकाओं के पीले दांत इस बात का जीता - जागता उदाहरण है कि गांव में टुयुबवेल से दिलवाये चार नल कनेक्शन से भी फ्लोराइड़ युक्त पानी निकल रहा है। दस वर्षिय सीमा आत्मज रमेश की माँ रामकला कहती है कि ''आज - नही तो कल जब मेरी लड़की को देखने को कोई युवक आयेगा तक क्या वह उसके पीले दांतो को देखने के बाद उससे शादी करने को तैयार हो जाएगा.....? '' गांव की मालती आत्मज जुगराम कक्षा दसवी तथा कविता आत्मज बिन्देलाल कक्षा 9 वी में पढऩे के प्रतिदिन कोलगांव आना - जाना करती है। इसी तरह सरिता कक्षा 7 वी में पढऩे के लिए बोरपानी गांव जाती है। गांव के कृष्णा आत्मज तुलाराम तथा गजानंद आत्मज राधेलाल की शिकायत पर वर्ष 2004 में बंद किये गये इस हेडपम्प के पानी से जहाँ एक ओर राजू आत्मज तोताराम भी विकलांगता की पीड़ा को भोग रहा है। वही दुसरी ओर गांव की फूलवंती आत्मज झुमरू , कला आत्मज चैतू तथा संगीता आत्मज गोररी की भी समस्या दांत के पीले पन से है। उन्हे इस बात की चिंता सता रही है कि कहीं उनका भावी पति उनके दांतो के पीलेपन तथा मँुह से आने वाली बदबू की व$जह से उनसे शादी करने से मना न कर दे। जब प्रदेश की विधानसभा तक मे फ्लोराइड युक्त पानी पर बवाल मचा तो बैतूल जिला कलेक्टर भी दौड़े - दौड़े उन गांवो की ओर भागे जिनके हेडपम्पो से फ्लोराइड युक्त पानी निकलता था। बमुश्कील आधा घन्टा भी इस की दहली$ज तक पहँुचे जिला कलेक्टर ने यहाँ - वहाँ की ढेर सारी बाते की लेकिन जब गांव कोटवार ने ही अपनी बेटी की विकलांगता की बात कहीं तो उसके इलाज की बात कह कर कलेक्टर महोदय चले गये ।
गांव के पंच संतराम , सुरतलाल , जुगराम , यहाँ तक की महिला पंच रामकली बाई भी कहती है कि ''साहब हमें नेता - अफसर नही चाहिये हमें तो ऐसा आदमी चाहिये जो कि हमारे दांतो का पीला पन दुर कर सके ताकि हम अपनी गांव की लड़कियो के हाथ आसानी से पीले कर सके........! '' गांव के हेडपम्प और टुयुबवेल से निकलने वाले फ्लोराइड़ युक्त पानी की व$जह सीवनपाट नामक आदिवासी बाहुल्य इस गांव की दुखभरी त्रासदी को सबसे पहले पत्रकारो ने ही जनप्रकाश में लाया लेकिन जिला प्रशासन की दिलचस्पी केवल उन्ही कामो में रही जिनसे कुछ माल मिल सके और यही माल कमाने की अभिलाषा जिले के तीन अफसरो को विधानसभा सत्र के दौरान सस्पैंड करवा चुकी है। लोक स्वास्थ यांत्रिकी विभाग के अफसरो का अपना तर्क है कि वह इस गांव के बारे में कई बार अपनी रिर्पोट जिला प्रशासन के माध्यम से राज्य सरकार तक भिजवा चुका है लेकिन इस गांव की समस्या से उसे कोई निज़ात नहीं दिलवा सका है। अब जब इस गांव की लड़की अपने हाथ पीले होने के इंतजार में बुढ़ापे की दहलीज पर पहँुच रही है तब जाकर मध्यप्रदेश की वर्तमान राज्य सरकार ने यह स्वीकार किया है कि बैतूल जिले के कुछ गांवो में पोलियो की व$जह इन गांवो के लोगो द्घारा पीया जाने वाला फ्लोराइड़ युक्त पानी है। निर्धारित मापदण्ड से अधिक मात्रा वाले फ्लोराइड के पानी का पेयजल के रूप में लगातार सेवन करना बच्चों, महिलाओं, युवाओं, बुजुर्गो, गर्भवती महिलाओं सहित सभी के लिए अत्यधिक नुकसानदायक है और इसके दुरगामी परिणाम शरीर पर होते है जिसके चलते दात, हड्डïी, पर्वस सिस्टम और किडनी पर असर पड़ता है। यह बात प्रसिद्घ अस्थि रोग विशेषज्ञ डॉ.योगेश गढ़ेकर से विशेष चर्चा में कही।
कर्ज में बिदा हो रही हो रही बेटियां
जेब में फूटी कौड़ी नहीं और चले कन्यादान करने
सदियो से चला आ रहा है कि हर बाप को अपनी बेटी की शादी के लिए कर्जा लेना पड़ता हैै। बाप बेटी की शादी के लिए कर्जा ले यहाँ तो सहीं पर क्या सरकार को भी अपनी मुख्यमंत्री कन्यादान योजना के लिए कर्जा लेना पड़ा हैै...! यह बात तो उसी मुहावरे को परिभाषित करती है कि ''घर में दाना नहीं और देने चले पूरे गांव को दावत...!'' मध्यप्रदेश के उस आदिवासी बाहुल्य बैतूल जिले में जहाँ पर भाजपा अभी 15 दिन पहले ही लोकसभा चुनाव जीती है वहाँ पर मुख्यमंत्री कन्यादान योजना के लिए जिले की दसो जनपदो के पास पैसा का अकाल पड़ा है। बीते वर्ष मुख्यमंत्री कन्यादान योजना के लिए 1467 दुल्हनो का कन्यादान किया गया था। इस कार्यक्रम के लिए 88 लाख दो हजार रूपये खर्च हुये थे। सरकार ने मात्र 65 लाख रूपये दिये जबकि 23 लाख रूपये जनपदो ने मुख्यमंत्री कन्यादान योजना के लिए निराश्रित फण्डके लिए आया रूपैया खर्च कर डाला। बीते एक साल से बैतूल जिले की सभी जनपदो को पंचायत एवं सामाजिक न्याय विभाग उन 23 लाख रूपयो के लिए कई बार पत्राचार करके उक्त कर्ज बतौर ली गई राशी को बिना ब्याज के मूलधन के रूप में वापस करवाने के लिए आवेदन - निवेदन कर चुका हैै। जहाँ एक ओर बाप अपनी बेटी का कर्ज जीवन भर नही चुका पाता है जिसके चलते उसे कन्या बोझ लगने लगती है लेकिन इस त्रासदी को देख कर तो अब यह लगने लगा है कि सरकार भी कन्यादान के चक्कर में भारी कर्ज में डूबी चली जा रही हैै। आम तौर पर शादी - विवाह या किसी भी काम के लिए कर्ज देने वाला कर्ज लेने वाले से स्टाम्प पेपरो से लेकर बहँुत कुछ अपने पास गिरवी रख लेता है लेकिन बेचारा सामाजिक न्याय विभाग को कर्ज का ब्याज तो दूर निराश्रितो के कल्याण के लिए आया 23 लाख रूपैया वापस लेने क लिए एक साल से जिले की जनपदो क चक्कर लगाने पड़ रहे हैै। अब लगता है कि सामाजिक न्याय विभाग को अपने मूलधन की प्राप्ति के लिए किसी बिचौलिये की शरण लेनी पड़ेगी ताकि उन रूपयो से निराश्रितो का कल्याण करा सके ।
इस वर्ष भी बीते कल 30 अप्रेल को 167 कन्याओं का सामुहिक कन्यादान जिले के पालक मंत्री ने किया लेकिन उसके लिए खर्च किया गया रूपैया भी पिछली बार की तरह अन्य विभाग से कर्ज लेकर किया गया। जिले को बीते वर्ष का कर्ज सहित इस बार के लिए 90 लाख रूपैया चाहिए लेकिन जिला पंचायत विभाग के पास दस जनपदो को देने के लिए दस पैसा भी नही है। बैतूल जिले में इस बार भी एक हजार से ऊपर गरीब , अनुसूचित जाति , जनजाति ,अल्पसंख्यक , पिछड़ा वर्ग की कन्याओं के कन्यादान करने के पीछे की मंशा में कहीं न कहीं आने वाले माह में होने वाला विधानसभा चुनाव काफी महत्व रखता है। कर्ज लेकर कन्यादान करने की प्रदेश सरकार की मंशा कहीं उसे कर्ज के बोझ में इतनी न डाल दे कि उसकी अन्य विभागो की अति महत्वपूर्ण योजनाये ठण्डे बस्तें में चली जाये।
मजाक बन गई मुख्यमंत्री की कन्यादान योजना
शादी के मण्डप में ललना को दुध पिलाती माँ ने लिये सात फेरे
मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री की महत्वाकांक्षी योजनाओं का क्या हश्र हो रहा है स्वंय मुख्यमंत्री इस बात से परिचीत है। बैतूल में स्वंय मुख्यमंत्री इस बात को स्वीकार कर चुके है कि कन्यादान योजना का लाभ लेने के लिए ऐसे लोग भी फेर ले रहे है जो कि दो - दो बच्चो के माता - पिता है। इसी बैतूल में जहाँ एक ओर बीते माह सम्पन्न कन्यादान कार्यक्रम में भाग लेने आयी एक युवती ने सात फेरो के दौरान ही अचानक हुई प्रसव पीड़ा के बाद एक स्वस्थ कन्या को जन्म दिया। वही दुसरी ओर गरीब - कमजोर - असहाय - मजदुर वर्ग के सभी जाति वर्गो के लोगो के लिए शुरू की गई राज्य सरकार की मुख्यमंत्री कन्यादान योजना में मिलने वाले दहेज के चक्कर में लोग घन चक्कर बन रहे है। हाल ही में बैतूल जिले के युवा सासंद महोदय की उपस्थिति में ज्यादा से ज्यादा कन्याओ का कन्यादान करवाना था तब अधिकारियो ने अपनी बहुचर्चित धारा 40 का डर बता कर शाहपुर जनपद क्षेत्र की ग्राम पंचायतो से इतनी कन्याओं को सुहागन के रूप बुलवाया लिया कि दर्जनो को बैंरग बिना फेरे लगाये ही अपने घरो को वापस लौटना पड़ा। जिले के नवनिर्वाचित सासंद एवं जिला कलैक्टर की मौजूदगी में शाहपुर जनपद क्षेत्र में लगे विशाल पण्डाल के नीचे 107 जोड़ो का कन्यादान हुआ। इस कार्यक्रम में निशाना के इन्द्रपाल और उसकी पत्नि बबली जो कि स्वंय ग्राम पंचायत पंच है ने अपने पति के साथ अपनी शादी के एक साल बाद दुबारा सात फेरे लिये। इसी तरह पाठई के दीनालाल भंगी ने अपनी पत्नि कुमकुम को एक बार फिर कुमकुम लगाया उसकी मांग भरी और सात फेरे लगाये। लोगो को दुबारा और तीबारा शादी के सात फेरे लगाता देख भंला घाटली इटारसी के दुलीचंद कहा रूकने वाले थे उसने भी अपनी अनिता से एक बार फिर बहती गंगा में हाथ धोने के बजाय डुबकी लगाना उचित समझा। लोगो का सारा ड्रामा देख कर अपने साथ किराये के ट्रेक्टर में 11 जोड़ो को लेकर आई आदिवासी महिला सरपंच श्रीमति रामदती भला कहा चुप रहने वाली थी उसने वहीं पण्डाल में लोगो की पोल खोल कर रख दी। ग्राम पंचायत रामपुर माल की इस महिला सरपंच को हंगामा करता देख ग्राम पंचायत टांगना माल के पंच किशन लाल विश्वकर्मा से रहा नहीं गया और उसने भी तपे लोहा पर अपना हथौड़ा दे मारा। किशल लाल का कहना था कि उसने भी ट्रेक्टर ट्राली में 10 जोड़ो को लाया था। इस भीड़ जुटाने और अधिक से अधिक कन्यादान के चक्कर में अब साथ लाई दुल्हनो को दहेज का सामान तो दूर रहा टे्रक्टर वाले को किराया कहां से देगा। उसने सोचा था कि कन्यादान में से वह कुछ टे्रक्टर वाले को देकर खुद भी बहती गंगा में नहा लेगा। जहाँ एक ओर इस कार्यक्रम में 71 जोड़ो को दुल्हन बनने के बाद बिना फेरे लिये बैरंग लौटना पड़ा वही दुसरी ओर दो दर्जन से अधिक जोड़ो ने दुबारा - किसी ने तीबारा सात फेरे लगा कर सरकारी माल को हड़पने का कार्य किया। इस बारे में मुख्य कार्यपालन अधिकारी शाहपुर जनपद का सीधा सरल जवाब है कि अब दुल्हन बनी हर युवतियो से पुछने से तो नहीं रहे कि उसकी इसके पहले भी कहीं शादी हुई है या नहीं....? सवाल यहां उठता है कि युवतियो ने नहीं पुछा जा सकता पर आँख से अंधे बनें अफसरो को यह नही दिखाई दिया कि कलावति या रामकली शादी के मण्डप में दुल्हन बनी अपने बच्चो को दुध पिला रही है। संगीता ने तो अपनी गोदी में उसके दुध मँुहे बेटे अमर के साथ ही सात फेरे ले लिये। सारे लोग नजारा देख रहे कि एक मां अपने बच्चे के साथ सात फेरे लगा रही है। जब इस ओर सासंद का ध्यान दिलवाया तो उन्होंने कलैक्टर की ओर मुड कर देखा ... कलैक्टर ने मुख्य कार्यपालन अधिकारी और इस अधिकारी ने सरपंच की ओर देखा। तीनो - चारो एक दुसरे को देख कर मुस्करा कर रह गये। मध्यप्रदेश राज्य सरकार की कन्यादान योजना का इतना बुरा हश्र देखने के बाद भी जिला प्रशासन सवार्धिक जोड़ो का कन्यादान करवाने के लिए स्वंय की पीठ थप - थपाये तो इससे बड़ी शर्मनाक बात और क्या होगी।
मामा के राज में बारह वर्षिय आदिवासी भांजे लाश
की अठारह घंटे पोस्टमार्टम का इंतजार करती रही
मध्यप्रदेश की भाजपा सरकार और उसकी सरकारी मिश्ररी प्रदेश के गरीब - आदिवासी और पिछड़े वर्ग के प्रति कितनी संवेदनशील है इसका नजारा हाल ही में देखने को मिला। आदिवासी बाहुल्य बैतूल जिले के सारनी ताप बिजली घर से निकलने वाली राख युक्त पानी से बने राखड़ नाले के समीप खखरा ढाना निवासी रतन लाल धुर्वे के बारह वर्षिय पुत्र रामलाल की बिजली के करंट लगने से मौत हो गई। मृतक के परिजन उसकी सूचना पुलिस को देकर उसकी लाश का पोस्टमार्टम करने के लिए सारनी थाना अन्तगर्त आने वाले पाटाखेड़ा स्थित उप प्राथमिक स्वास्थ केन्द्र में घटना के दिन शाम 5 बजे टे्रक्टर - ट्राली में लेकर आ गये थे लेकिन उप स्वास्थ के केन्द्र के प्रभारी चिकित्सा अधिकारी ने मृतक बच्चे का शाम 5 बजे से लेकर दुसरे दिन 18 घंटे तक पोस्टमार्टम नहीं किया। इस बात की जानकारी कुछ जागरूक लोगो को पता चली तो उन्होने ने उप स्वास्थ केन्द्र प्रभारी की परेड़ ली तब जाकर मृतक का पोस्टमार्टम हुआ। दिन भर टे्रक्टर ट्राली में पड़ी एक अबोध बालक की लाश की इस र्दुदशा पर समाजवादी पार्टी के युवा प्रकोष्ठï के नेता विनोद जगताप ने इस घटना की निंदा करते हुये आरोप लगाया कि भाजपा सरकार संवेदनाहीन हो गई है। श्री जगताप का आरोप है कि उस समय उप स्वास्थ केन्द्र में मौजूद चिकित्सक ने मृतको के परिजनो से पोस्टमार्टम करवाने के नाम पर रूपयो के लेन - देने न होने पर पाटाखेड़ा से रानीपुर चले गये लेकिन उस अबोध बालक का पोस्टमार्टम नहीं किया।
इन सारी घटनाओं के बाद कलयुगी प्रदेश की लाखो बहनो के भैया और बेटे - बेटियो के मामा शिवराज सिंह को इस समाचार रूपी आईन में अगर अपनी योजनाओं के दु:ष परिणामो की सूरत बदï्सूरत लगे और वह आइना ही तोड़ देते तो आइने का क्या दोष होगा।
न बन सके बहनो के भैया और न बन सके मामा
रामकिशोर पंवार ''रोंढ़ा वाला''
''चंदा मामा दूर के पुये पकाये पूर के ..'' इस फिल्मी गीत में छुपे भाव को समझाने का प्रयास किया गया है। रूठे बेटे को उसकी मां समझाती है कि उसके चंदा मामा दूर रहते है और वे जब आयेगें तो पुये पकायेगें ...... इस समय भी पूरे मध्यप्रदेश के जगत मामा बने शिवराज की बहने भी अपने अपाहिज , बीमार - लाचार बेटे - बेटियो को दिलासा दिलाती है कि उसका शिवराज मामा एक दिन जरूर आयेगा लेकिन सत्ता के मद में मस्त मामा को अपने भांजे भांजियो की तो दूर रही बहनो तक की खबर तक नहीं है। शादी के लिए जवान बेटियो की बात कहे या फिर गरीब विधवा हाथ मजुदरी करने वाली पौढ़ महिला की युवा विकलांग बेटी के एमबीए करने की अभिलाषा हर उम्मीदो पर पानी फिरने वाले मध्यप्रदेश के लाखो बेटे - बेटियो के जगत मामा कहलाने वाले शिवराज का इंतजार करते थक गये लोगो ने अब मौत को गले लगाना शुरू कर दिया है। अकेले आदिवासी बाहुल्य बैतूल जिले में मार्च - की तेज धुप में सौ से अधिक लोकसभा की चुनावी आम सभाओं में उपस्थित महिलाओं से हाथ ऊपर करवा कर स्वंय को उनका शिवराज भैया तथा गोदी में खेलने वाली बिटिया लेकर शादी योग्य कन्याओं का कन्यादान करवाने का जिम्मा लेने वाले मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज की घोषणाओं की पोल खोलती जिले में घटित घटनाओं को सुनने एवं पढऩे के बाद भी अगर जगत मामा को कम से कम से अपनी भांजी के कन्यादान के लिए चार हजार का कर्जा न चुकाने वाली बहन और बहनोई के अंतिम संस्कार में तो आना चाहिये था लेकिन शिवराज मामा तो चंदा मामा से भी दूर का हो गया। बैतूल जिले में घटित दर्दनाक घटनाओं के बाद तो भाजपाई रंग में रगे मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह को भीड़ - भाड़ भरे जलसो एवं सम्मेलनो में आई महिला और उनके बच्चो को देख कर उनके बहनो के भैया और बच्चो के मामा कहलाने का कोई हक नहीं बनता।
प्रमिला का मामा नहीं आया उसका कन्यादान करने और
शादी के लिए कर्जा लेने वाले मां - बाप ने आत्मदाह कर लिया......
घोषणावीर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह कन्यादान योजना के प्रति कितने सजग है यह तो खुदा ही जाने लेकिन बैतूल जिले की प्रमिला के लिए उसका शिवराज मामा उसके लिए कंस और शकुनी मामा से कम नहीं निकला....... आज इसी मामा के चक्कर में आदिवासी बाहुल्य बैतूल जिले के आठनेर थाना क्षेत्र के धामोरी निवासी रज्जड़ जाति की वृद्घ दम्पति ने अपनी शादी योग्य बेटी प्रमिला की शादी के लिए कर्ज को न चुका पाने की स्थिति में मिटटी का तेल डाल कर आत्मदाह कर लिया। बीती 16 मई को प्रमिला की शादी के लिए 4 हजार रूपये के कर्ज को चुकाने की चिंता इन दोनो वृद्घ दम्पति लक्ष्मण आत्मज पतिराम उम्र 55 वर्ष और उसकी जीवन संगनी शांता पत्नि लक्ष्मण उम्र 50 वर्ष ने अपने पति को जलता देख कर साथ जीने और साथ मरने का वचन निभाते हुये वह अपने पति से लिपट कर स्वंय को आग की दहकती अंगारो के बीच झोक डाला जिसके चलते वह बुरी तरह जल गई। दोनो वृद्घ दम्पति ने जिला चिकित्सालय में दम तोड़ दिया। चार बच्चो में तीन लड़कियां और एक लड़का है। सबसे बड़ी बेटी प्रमिला की हाल ही में 16 मई को शादी करने के लिए उन दोनो हाथ मजदुरी करने वाले परिवार के मुखिया और उसकी पत्नि को चार हजार का कर्जा जीने से बड़ा बोझ लगा और दोनो ने चारो बच्चो को अनाथ छोड़ कर अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली। बैतूल नगर में ही उन दोनो वृद्घ दम्पति का देशबंधु वार्ड के जागरूक लोगो ने एक ही चिता पर रख कर अंतिम संस्कार किया। बेटी की शादी के बाद दुसरे के घर साल भर के लिए नौकर रहे इस रज्जड़ जाति की वृद्घ दम्पति के द्घारा किया गया आत्मदाह मध्यप्रदेश की लाखो कन्याओं की शादी करने में अक्षम कन्याओं के मामा बने शिवराज सिंह की बहुचर्चित मुख्यमंत्री कन्यादान योजना के मुँह पर कालिख पोत गई क्योकि जहाँ एक ओर अभी हाल ही में मुख्यमंत्री कन्यादान योजना में शाहपुर जनपद में लोग दुबारा - तीबारा शादी कर रहे है वहीं दुसरी ओर प्रमिला के कन्यादान के लिये चार हजार रूपये के कर्ज के लिये उसके माता - पिता को आत्मदाह करना पड़ रहा है। पुलिस ने इस मामले को दर्ज तो कर लिया है पर वह आत्मदाह के लिए बाध्य करने के लिए किसके खिलाफ प्रकरण दर्ज करेगा। क्या इन दोनो गरीब वृद्घ दम्पति को आत्मदाह करने के लिए बाध्य कराने के लिए मुख्यमंत्री और उसकी कन्यादान योजना तथा उसके पालन के लिए अधिकृत अफसर दोषी नहीं है। बरहाल प्रमिला को आज भी शिवराज कंस मामा लगते है क्योकि कंस ने ही अपनी बहन और जीजा को जो यातनाये दी थी वह प्रमिला के माता - पिता से कम नहीं है। यह बात अलग है कि भगवान श्रीकृष्ण के माता - पिता ने आत्मदाह नही किया लेकिन प्रमिला के तो माता- पिता कलयुगी कंस मामा के चलते आत्मदाह को मजबुर हो गये।
मामा आये नहीं और भांजे तड़प - तड़प कर मर गये
इलाज के अभाव में 17 नवजात बच्चो की अकाल मौत
लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान प्रदेश के मुख्यमंत्री ने अपनी बहनो और भांजो को विश्वास दिलाया था कि वे उन्हे जब भी पुकारेगें उनका शिवराज भैया और मामा दौड़ा चला आयेगा। चुनावी वादो को अभी एक पखवाडा भी नहीं हो पाया और बैतूल जिले के विभिन्न प्राथमिक स्वास्थ केन्द्रो से रेफर सीरियस 17 नवजात बच्चो की इलाज के अभाव में अकाल मौत हो गई। जहाँ एक ओर इसदेश में नि:संतान माँ अपनी कोख में किलकारी के गुंजने के लिए मंदिरो और मजारो पर जाकर दुआये मांगती है वही दुसरी ओर एक ही दिन एक माँ के तीन नवजात शिशुओ ने चिकित्सको की लापरवाही के चलते तड़प - तड़प कर दम दोड़ दिया। बैतूल जिला चिकित्सालय में अभी तक एक पखवाड़े में 17 नवजात शिशुओ की अकाल मौत हो चुकी हैैजिसके पीछे का कारण यह बताया जा रहा है कि बैतूल जिला मुख्यालय के चिकित्सालय में पदस्थ शिशु रोग विशेषज्ञ डा अरूण श्रीवास्तव लम्बी छुटटï्ी पर चले गये। बैतूल जिला मुख्य चिकित्सालय में पदस्थ शिशु रोग विशेषज्ञ एवं सिविल सर्जन श्रीमति रश्मी कुमरा के पदस्थ रहने के बाद भी उनके द्घारा मात्र पर्ची के अभाव में आठनेर विकास खण्ड के रजोला ग्राम की आदिवासी महिला श्रीमति संध्या पत्नि मन्नू कुमरे ने आठनेर के सरकारी प्राथमिक स्वस्थ केन्द्र में तीन बच्चो को जन्म दिया जिसे कमजोर हालत में बैतूल जिला मुख्य चिकित्सालय रेफर किया गया। महिला किसी तरह अपने परिजनो के साथ उन एक साथ जन्मे तीनो बच्चो को लेकर तो बैतूल आ गई लेकिन यहाँ पर शिशु रोग विशेषज्ञ के अभाव तथा वर्तमान में सिविल सर्जन एवं शिशु रोग विशेषज्ञ डाँ श्रीमति रश्मी कुमरा की अखड़पना के चलते तीनो बच्चो का समय पर इलाज इसलिए नहीं हो पाया क्योकि अनपढ़ आदिवासी महिला अपने तीन बच्चो के नामो की अलग - अलग पर्ची नहीं बनवा पाई और उसके पति के पास ही वह पर्ची रह गई जो देर से जिला मुख्य चिकित्सालय पहँुचा। बेचारी एक ही पर्ची पर तीनो बच्चो का इलाज करवाने की तथा पर्ची के पति के पास रह जाने की भूल के चलते अपने तीनो नवजात शिशुओ से हाथ धो बैठी।
यह कोई पहली घटना नही है जब किसी मां के बच्चो की मौत हुई हो ...। बैतूल जिला मुख्य चिकित्साल में जिले भर के प्राथमिक एवं उप प्राथमिक स्वास्थ केन्द्रो से रेफर अधिकांश बच्चो की बैतूल तक आते - आते मौत हो जाती है जो बदकिस्मती से बैतूल अगर जिंदा पहुंच गया तो उसे डाक्टरो की लापरवाही एक दुसरे पर इलाज करने की जवाबदेही उन बच्चो की मौत का कारण बन जाती है। के तीन बच्चे इलाज के अभाव में काल के गाल में समा गये। वैसे देखा जाये तो आदिवासी बाहुल्य बैतूल जिले में स्थित जिला मुख्य चिकित्सालय बैतूल में बच्चो के लिए 5 लाख रूपये की लागत से विशेष कक्ष बनवाया गया है जिसमें इन पंक्तियो के लिखे जाने तक न तो कोई उपकरण है और न कोई नर्स या वार्डबाय। राज्य सरकार की अति महत्वाकांक्षी प्रसुति जननी योजना की पोल खोलती इन घटनाओं पर जिला मुख्य चिकित्सालय में बरसो से पदस्थ शिशु रोग विशेषज्ञ एवं सिविल सर्जन डां. श्रीमति रश्मी कुमरा का साफ शब्दो में कहना है कि मुझे सिविल सर्जन की जवाबदेही मिली है मैं उसके अलावा दुसरा कोई काम नहीं कर सकती। इधर जिला मुख्य चिकित्सा अधिकारी भी यही राग अलापते न$जर आते हैै। राज्य केमुखिया को इस प्रकार के घटनाओं के बाद तो स्वंय को उन गर्भवति बहनो का भाई तथा नवजात शिशुओ का मामा कहलाने का कोई हक नहीं बनता। बरहाल जो भी हो इस प्रकार की घटनाये बैतूल जिले के लिए शर्मसार है।
बहन परेशान हो गई भैया के चलते
पहँुची सीधे राज्य महिला आयोग के पास
अपने शिवराज भैया की बहुचर्चित कन्यादान योजना को लेकर अधिकारियो ने शिवराज सिंह की उन बहनो को भी प्रताडि़त करना नही छोड़ा जो कि सरकारी मोहकमें में अधिकारी के पद पर विराजमान है। मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की अति महत्वपूर्ण मुख्यमंत्री कन्यादान योजना को उस समय ग्रहण लग गया जब मुलताई तहसील के दो अधिकारियो ने इस कार्यक्रम क निरस्त होने के पीछे एक दुसरे को जवाबदेह बताया। मुलताई की महिला एवं बाल विकास परियोजना अधिकारी श्रीमति मनोरमा येवले ने खुल कर इस कार्यक्रम के निरस्त होने को लेकर स्वंय को जनपद पंचायत अधिकारी की शिकायत राज्य महिला आयोग से करक सनसनी पैदा कर दी। महिला अधिकारी ने जनपद मुख्य कार्यपालन अधिकारी पर कई प्रकार के गंभीर आरोप लगाने वाली महिला अधिकारी श्रीमति मनोरमा येवले ने अपनी शिकायत में लिखा है कि कन्यादान योजना जनपद पंचायत की है जिसके निरस्त होने क लिए उसे दोष देना न्यायोचित नहीं हैै। श्रीमति येवले का यह भी आरोप है कि जनपद अधिकारी उसे सस्पैण्ड करवाने के बहाने ब्लैकमेल कर रहे हैै। बैतूल जिले की पहली महिला अधिकारी जिसने अपने आप को मानसिक रूप से प्रताडि़त किये जाने की राज्य महिला आयोग से शिकायत की है।
मामा ने जब भांजे के लिए कोई मदद नहीं की तो बहन ने
अपने जीगर के टुकड़े को आखिर दे दी किडनी
माँ तू कितनी अच्छी है , प्यारी - प्यारी है ओ माँ ....... इस फिल्मी गीत को सुनने के बाद हर किसी की आँखो के सामने अपनी माँ की तस्वीर उभर कर सामने आ जाती है। यह महिला भी शिवराज सिंह चौहान की बहन कहलाई जाती है क्योकि शिवराज सिंह कहा करते है कि प्रदेश की हर दुखियारी , गरीब , असहाय , बहनो का वह भैया है। इस बहन ने भी अपने भैया से लेकर सभी से मदद मांगी लेकिन उसे सभी जगहो से मदद के नाम पर जब दुत्कार मिली तो इस महिला ने अपनी वो मिसाल कायम की कि सुनने वाले दंग रह जाते है। पाथाख्ेाडा कोल संस्थान की उप नगरी शोभापुर कालोनी के कैलाश नगर में रहने वाली कलावति नरवरे ने अपनी कोख के लाल के लिए जब कोई किडनी का दानदाता न मिला तो स्वंय की किडनी देकर उसकी जान बचा ली। उमेश के लिए कलावति माँ के रूप में स्वंय आदिशक्ता स्वरूपा जगदम्बा बनी जिसने अपने लहू से अपने लाल को नया जीवन दे दिया। नागपुर के एक चिकित्सालय में अपनी किडनी देने के बाद लगातार सात घंटे तक बेहोश रही कलावति नरवरे किराड़ जाति की वह बहादुर महिला है जिसने अपने लाल के इलाज के लिए दर - दर की ठोकरे खाने के बाद भी हिम्मत नहीं हारी। करीब छै - सात माह से अपने छोटे बीमार लाड़ले के लिए अंत समय में किडनी देकर उसकी जीवन बचाने वाली माँ कलावति कहती है कि जब वह ठीक हो जायेगी तो अपने लाल को लेकर महाकाल के दर्शन के लिए उज्जैन जाएगी और मत्था टेक कर भगवान आशुतोष का आभार व्यक्त करेगी। नागपुर में अभी डाक्टरो की देख- रेख में पूर्ण स्वस्थ हो रहे बेटे को किडनी देने वाली इस माँ ने माँ की अभी तक की सभी परिभाषा को बदल कर उसका एक नया रूप प्रस्तुत किया है जिसका बखान भर करने से आँखो से झर - झर कर अश्रु धारा निकल पड़ती है। चंडीगढ़ से लेकर इन्दौर सहित कई महानगरो में अपने बेटे के लिए किडनी तलाशने वाली इस माँ ने भारतीय संस्कृति में नारी के दर्जे को नया आयाम दिया है। आज के युग में जब माँ अपने सौदंर्य और लोक लज्जा के डर से वैध - अवैध कोख में पलने वाले बच्चो का गला घोटने में पीछे नही हटती है ऐसे में कलावति का अपने बेटे के लिए किडनी का दान सचमुच वास्तव में एक अद्घितीय मिसाल है।
जननी सुरक्षा योजना का पैसा पाने के लिए
गोदी में नवजात ललना लिये भटकती मायें
मध्यप्रदेश सरकार की अति महत्वाकांक्षी जननी सुरक्षा योजना का पिछले एक माह से बजट नहीं आने तथा आने वाले दो माह तक उक्त योजना का पैसा न आने की सरकारी घोषणाओं के बाद भी अपने 15 दिन से दो महिने के नवजात ललना को गोदी में लिये उक्त पैसा को पाने के लिए जिला चिकित्सालय का चक्कर काटने वाली मांये अब असुरक्षित दिखाई देने लगी है। सरकारी चिकित्सालयो में प्रसव करवाने वाली माताओं एवं उन्हे प्रोत्साहित करने वाली महिलाओं को मिलने वाली अलग - अलग योजनाओं की राशी का अब तक आवंटन नहीं आने के कारण सौ से अधिक महिलाओं का रोज आना और फिर बैंरग वापस लौट जाना अपने आप में एक त्रासदी है। उल्लेखनीय है कि ग्रामिण क्षेत्र की महिलाओं को किसी भी सरकारी चिकित्सालय में प्रसव करवाने पर 14 सौ तथा शहरी क्षेत्र की महिलाओं को 1हजार रूपैया मिलना था लेकिन 31 मार्च के बाद चालू वर्ष का बजट जो कि 1 अप्रेल के बाद आ जाता है वह नहीं आने के कारण उक्त समस्या आ गई है। गोदी में बच्चा लिये माये और उन्हे उत्प्रेतिर करने वाली ग्रामिण क्षेत्र की महिलाये प्रति प्रसव 6 सौ तथा शहरी क्षेत्र की महिलाये प्रति प्रसव 200 रूपये पाने के लिए हर रोज जिला चिकित्सालय में आ धमकती है। कुछ महिलाओं को तो आने वाले महिनो की तारीख के चेक तक दे चुके है लेकिन खाता में पैसा न होने के कारण उनके चेक बाऊंस होने की शिकायते मिलना आम बात है। गोदी में अपने बच्चो को नौतपा की तपती धुप में लेकर गांवो से शहरो का चक्कर काटने वाली दर्जनो महिलाओं की आपबीती सुनने के बाद ऐसा लगता है कि मुख्यमंत्री की सरकारी योजनाओं का हश्र ठीक उसी मुहावरे की तरह हो गया कि जेब में चवन्नी नहीं और देने चले मोहल्ले को दावत......
बहनो के लिए पति की नसबंदी बनी आफत
पति ने यदि शक किया तो ........
बच्चे दो ही अच्छे लेकिन सरकारी उक्त फरमान के बाद जिसने भी उक्त सरकारी नारे पर भरोसा किया उसने बस यही कहा होगा कि हम पहले ही अच्छे थे....... पति - पत्नि के बीच का रिश्ता काफी नाजुक होता है। शक की हल्की सी सुई उन रिश्तो में दरार ला सकती है। पत्नि की नसबंदी हो और वह फेल हो जाये तो पत्नि पर पति को शक नहीं होगा लेकिन पति अगर नसबंदी करा ले और पत्नि गर्भवति हो जाये तो स्वभाविक है कि दोनो के बीच के जनम - जनम के रिश्तो में बहँुत लम्बी खाई आ सकती है। पाढऱ का चंदू बस इसी त्रासदी से गुजर सकता था लेकिन उसे अपनी पत्नि पर पूरा यकीन था तभी तो चार बच्चे के पिता चन्दू आत्मज मानू ने 25 दिसम्बर को पाथाखेड़ा में आयोजित पुरूष नसबंदी शिविर में अपना आपरेशन करवा लिया था। वर्ष 2006 एवं 2007 गुजर जाने के बाद जब उसकी पत्नि मां नहीं बनी और उसकी नियमीत माहवारी होते रही तब अचानक ऐसा क्या हो गया कि उसके पांव भारी हो गये। बेचारे चन्दू ने अपनी समस्या को लेकर चिकित्सा अधिकारी से लेकर अपर कलैक्टर तक के चक्कर काटे लेकिन कहीं से न्याय नहीं मिला। एक दिन अचानक अपर कलैक्टर को चन्दू उसके कार्यालय के बाहर पुन: मिला तो उसने अपनी वहीं समस्या बताई। अपर कलैक्टर की पहल पर चन्दू का मेडिकल परीक्षण हुआ जिसने उसकी नसबंदी को फेल होने की बात सामने आ गई। चन्दू की पत्नि को खबर लिखे जाने तक तीन माह का गर्भ है वह पांचवा बच्चा नहीं चाहता लेकिन उसकी मौत का कारण भी नहीं बनना चाहता। यदि चिकित्सक आज से तीन महिने पहले उसकी पत्नि को माहवारी न होने पर उसे लेकर आये चन्दू की समस्या का निराकरण कर देते तो शायद चन्दू पांचवे बच्चे का बाप नहीं बन पाता लेकिन सरकारी लटके - छटको से हैरान - परेशान चन्दू अपनी नसबंदी के फेल हो जाने पर अब न्यायालय की शरण लेगा। हाथ मजदुरी करने वाले चन्दू की ओर से अब इस बारे में जिला न्यायालय में क्षतिपूर्ति तथा अन्य मामला डालेगा। उसे वकीलो की सलाह पर सरकार के खिलाफ केस डालने से कुछ रूपयो की मिलने की उम्मीद है। इधर चिकित्सकों ने चन्दू की नसबंदी फेल हो जाने का ठीकरा भी उसी के सर पर फोड़ डाला है। चिकित्सको का कहना था कि आपरेशन होने के तीन महिने बाद उसने अपना ब्लड टेस्ट नहीं करवाया इसलिए गलती उसकी ही है। अब चिकित्सको को कौन समझाये कि नसबंदी तीन महिने में नहीं बल्कि तीन साल बाद फेल हुई है। अगर उसकी नसबंदी तीन महिने में फेल हो जाती तो उसकी पत्नि के पांव मार्च 2006 में भारी हो जाते लेकिन उसके पांव तो मार्च 2008 में भारी हुये है।
बैतूल जिले में वैसे भी पुरूष बहँुत कम नसबदी करवाते है और जो करवा लेते है उनका हाल चन्दू जैसा ही होता है। इस जिले में इस वर्ष यह चौथा मामला है जब कोई पुरूष अपनी नसबंदी के फेल होने का मामला जनप्रकाश में लाया है। इसके पूर्व प्रभात पटटïï़्न ब्लाक के सेंदुरजना निवासी कैलाश पिता दशरथ साहू की शिकवा - शिकायत भी कुछ इसी प्रकार के नारो एवं स्लोगनो के खिलाफ है। बेचारा कैलाश हम दो हमारे दो , तीसरा होने न दो के चक्कर में पड़ कर आज से ढाई साल पहले अपना नसबंदी आपरेशन करवा लिया था। अब उसकी पत्नि को छै माह का गर्भ है। बेचारा हाथ मजदुरी का काम करने वाला कैलाश अपनी पत्नि के प्रति समर्पित है इसलिए वह अपनी पत्नि पर शक - संदेह न करके उसने स्वंय पहले अपने आप को ही इसके लिए दोषी मान कर स्वंय की जाँच करवाई तो पहले तो उसे इतने लटके - छटके खाने पड़े की वह हैरान एवं परेशान हो गया । काफी भागा दौड़ी के बाद डाक्टरो ने स्वीकार किया कि उसका नसबंदी का आपरेशन फेल हो गया। पहले से ही तीन बच्चो का बाप कैलाश अब चौथा बच्चा नही चाहता लेकिन उसकी पत्नि के गर्भ में अधजन्मे शीशु की हत्या का वह पाप भी अपने सर नहीं लेना चाहता। पेशोपश में पड़ा सरकार के भरोसे पर विश्वास करने वाला कैलाश के लिए तो बस अब यही गाना उचित होगा कि क्या मिल गया सरकार हमें नसबंदी करवा के ---
निराश्रीत किरण को कोसो दूर तक
आशा की एक किरण दिखाई नहीं दे रही........
आमतौर पर कहा जाता है कि ''पूत के पाव पालने में दिखाई देते है..'' ! किरण के पाव तो बचपन से पोलियो की भेट चढ़ जाने के बाद भी उसने अपने पैरो पर खड़े होकर आसमान की उस मंजील को छुना चाहा जहां तक पहुंच पाने की कोई कल्पना भी नहीं कर सकता। बैतूल जिला मुख्यालय की ग्राम पंचायत रोढ़ा की किरण मात्र एक साल की उम्र में ही अपने पिता को खो देने के बाद हाथ मजदुरी करने वाली अपनी बेवा माँ इंदु बाई पंवार के पसीने से अपने सपनो को साकार करने के लिए बिना रूके पढ़ाई करते आज उस मुकाम तक पहुंचने के पहले ही लडख़ड़ा कर गिरने जा रही है। बीएससी की परीक्षा अव्वल दर्जे से उत्तीर्ण इस विकलांग छात्रा का इसी महिने इन्दौर में एमबीए कोर्स के लिए चयन हो गया। अब उसे किसी भी सूरत में एडमीशन फीस के लिए 30 हजार रूपये तथा प्रतिवर्ष दो लाख पच्चीस हजार रूपये की मदद की आवश्क्यता है लेकिन उसकी मदद करने को कोई भी तैयार नहीं। भगवा रंग में रंगी भाजपा सरकार के मुख्यमंत्री अपनी प्रतिभावान लड़कियो को मदद करने की शासकीय घोषणाओं पर यदि अमल करते तो किरण की सपनो की आशा कोसो दूर न$जर नही आती। 30 मई तक उस विकलांग किरण को 30 हजार रूपये की मदद की त्वरीत जरूरत है लेकिन उसकी सभी जनप्रतिनिधियो एवं सरकारी अधिकारियो तक की गई फरियाद पर मदद मिलना तो दूर दुत्कार मिलती चली आ रही है। जिले के नवनिर्वाचित सासंद हेमंत खण्डेलवाल के पूज्य पिताजी एवं जिले के पूर्व सासंद स्वर्गीय विजय खण्डेलवाल '' बाबू जी'' के अधूरे सपनो को पूरा करने का अपना रटा - रटाया डायलाग बोलने वाले इस युवा सासंद को अपनी सासंद नीधि दस लाख रूपये की मदद की घोषणा करने के लिए पैसा है , लेकिन में नही है एमबीए करने की उम्मीद रखने वाली किरण के लिए चार आना भी नही.......! जहां एक ओर जनप्रतिनिधियो को अपने चाटुकारो एवं भाट - चारणो की मदद के लिए स्वेच्छा अनुदान का लाखो रूपैया है वही दुसरी ओर प्रतिभावान लड़की अपने उज्जवल भविष्य को साकार करने के लिए फूटी कौड़ी का न होना अपने आप में ही एक ऐसी शर्मसार घटना है कि इस खबऱ को पढऩे वाला ही अपने आप में घृणा इसलिए महसुर करेगा कि क्या इसी दिन को देखने के लिए प्रदेश में सुश्री उमा भारती ने भगवा झण्डा फहराया था। मध्यप्रदेश के घोषणा वीर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की खोखली साबित हो रही घोषणाओं पर किरण की आशा की बुझती किरण एक करारा तमाचा मारती है। बैतूल जिले के ज्ञानपांडे अधिकारी किरण को ही मदद करने के बजाय उसकी अभिलाषो का ही गला घोटने का काम करने लगे है। बात चाहे जिला कलैक्टर की हो या सहायक आयुक्त की दोनो के पास गरीब - निराश्रित किरण की मदद की गुहार पर तरह - तरह के तर्क - कुतर्क है। दोनो अधिकारी स्वंय मुख्यमंत्री की उस घोषणा की पोल खोलने का काम कर रहे है जिसमें यह कहा गया कि गरीब - किसान - मजदुर - निराश्रीत की बेटी की पढ़ाई से लेकर सगाई तक का खर्चा सरकार वहन करेगी। प्रतिभावान किरण की मदद के लिए तथाकथित समाजसेवा का दंभ भरने वाले संगठन से लेकर समाजसेवी तक दुम छुपाते फिर रहे है। जिले के विधायक यहां तक की इस विकलांग किरण के स्वजाति संगठन और उससे जुड़े धन्नासेठ लोग तक उसके सपनो को पूरा करने का बीड़ा उठाने को तैयार नहीं है। अपने जीजा के पास रह कर अपनी अभिलाषो को पूर्ण रूप देने के लिए किसी मददगार की राह देखती किरण को अखबारो में अपनी मदद के किस्से छपवाने वाले नाम और चेहरा छपवाने वाले नेता - अभिनेता भी कोसो दूर तक दिखाई नहीं पड़ रहे है। बैतूल जिले में महिला उत्थान से लेकर बालिकाओं और अन्य कार्य योजनाओं के नाम पर अरबो -खरबो की देशी - विदेशी मदद पाने वाले स्वंयसेवी संगठन भी मदद के नाम पर किरण से बदतï्र स्थिति में अपाहिज दिखाई पडऩे लगे है।
शिवराज की भांजियो के दांत पीले है
इसलिए उनके हाथ पीले नहीं हो पायेंगें ...!
शादी - विवाह का मौसम आया और चला भी गया....... इस बार भी सीवनपाट नामक उस गांव में एक बार फिर भी न तो ढोल बजे और न कोई शहनाई गुंजी ....... इसके पीछे जो भी कारण हो पर सच्चाई सोलह आने सच है कि इस गांव की लड़कियो के दंातो पर छाए पीलेपन को कोलेगेट से लेकर सिबाका ....... यहाँ तक की डाबर लाल दंत मंजन तक दूर नहीं कर पाया है । यह अपने आप में कम आश्चर्य जनक घटना नही है कि देश - दुनिया की कोई दंत मंजन कंपनी सीवन पाट गांव की उन युवतियों के चेहरो पर मुस्कान नहीं ला सकी है जिनके दांत पीले होने की वज़ह से उनके हाथ पीले नहीं हो पा रहे है । दंातो की समस्या पर आधारित उस गांव के हेडपम्प से निकलने वाले तथाकथित फ्लोराइड़ युक्त पानी के पीने से आंगनवाड़ी कार्यकत्र्ता मीरा पत्नि शिवजी इवने एक हाथ से विकलंाग बन चुकी है। एक हाथ से काम ही नहीं हो पाने के कारण मीरा अपने पीड़ा को अपने गिरधर गोपाल को भी गाकर - बजा कर नहीं सुना सकती है। अपने एक कम$जोर हाथ को दिखाती मीरा इवने रो पड़ती है वह कहती है कि साहब जब हाथ ही काम नहीं कर पा रहा है तब दांत के बारे में क्या करू....... ! काफी शिकवा - शिकायते करने के बाद लोक स्वास्थ यांत्रिकी विभाग के द्घारा उक्त हेड पम्प को बंद किया गया। बैतूल से आठनेर जाते समय ताप्ती नदी के उस पार बसे सीवनपाट नामक आदिवासी बाहुल्य गांव मूसाखेड़ी ग्राम पंचायत के अन्तगर्त आता है। इस गांव के बंद किये गये हेडपम्प के पानी पीने से के पानी की व$जह से अकेली मीरा ही विकलांग नहीं है उसकी तरह कक्षा 9 वी में गांव से 6 किलो मीटर दुर बसे कोलगांव में पढऩे जाने वाली गांव कोटवार हृदयराम आत्मज राधेलाल की बेटी रेखा आज भी बैसा$खी के सहारे गांव से पैदल ताप्ती मोड़ तक आना- जाना करती है। प्रतिदिन बस से किराया लगा कर स्कूल पढऩे जाने वाली रेखा की हिम्मत को दांद देनी चाहिये क्योकि उसने विकलांगता को चुनौती देकर अपनी पढ़ाई को जारी रखा। अनुसूचित जाति की कक्षा 9 वी की इस विकलांग छात्रा कुमारी रेखा के पिता हृदयराम अपनी पीड़ा को व्यक्त करते समय रो पड़ता है वह बताता है कि '' साहब मेरी बेटी कन्या छात्रावास बैतूल में पढ़ती थी लेकिन वह इस पानी के चलते विकलांग बन गई और बीमार रहने लगी जिसके चलते वह एक साल फेल क्या हो गई उसे छात्रावास से छात्रावास अधिक्षका ने निकाल बाहर कर दिया मैंने काफी मन्नते मांगी लेकिन मेरी कोई सुनवाई नहीं हुई ...... ! '' हालाकि दांत के पीले होने की त्रासदी से रेखा भी नहीं बच पाई है। गांव में यूँ तो फ्लोराइड़ युक्त पानी ने कई लोगो को शारीरिक रूप में कम$जोर बना रखा है। 34 साल की देवला पत्नि राजू भी अपने पीले दांतो को दिखाती हुई कहती है कि मेरी शादी को 20 साल हो गये उस समय से मेरे दांत पीले है आज मैं हाथ - पैर से कम$जोर हँू आज मेरे पास कोई काम धंधा नही है....! गांव के स्कूल के पास रहने वाली इस आदिवासी महिला के 4 बच्चे है जिसमें एक बड़ी लड़की की वह बमुश्कील शादी करवा सकी है......! पथरी का आपरेशन करवा चुकी देवला और उसके सभी बच्चो के दांत पीले है।
उस गांव की युवतियाँ अपने भावी पति के साथ सात जन्मो का साथ निभाने के लिए दिन - प्रति दिन अपने यौवन को खोकर बुढ़ापे की ओर कदम रख रही है लेकिन इन पंक्तियो के लिखे जाने तक कोई भी इन युवतियों से शादी करने को तैयार नहीं है। इस गांव की फुलवा अपनी बेटी की दुखभरी दांस्ता सुनाते रो पड़ती है वह कहती है कि ''साहब इसमें हमारा क्या दोष ......... ! इस गांव के पानी ने हमें कहीं का नहीं छोड़ा है . मेरी ही नहीं बल्कि इस गांव की हर दुसरी - तीसरी लड़की के हाथ सिर्फ इसलिए पीले नहीं हो पा रहे है क्योकि उनके दांत पीले है.......! '' माँ सूर्य पुत्री ताप्ती नदी का जब यह हेड पम्प नहीं खुदा था तब तक पानी पीने वाले गांव के भूतपूर्व पंच 57 वर्षिय बिरजू आत्मज ओझा धुर्वे कहता है कि ''साहब उस समय हमें कोई बीमारी नहीं हुई न दांत पीले हुये न हाथ - पैर कमज़ोर हुये ........! पता नहीं इस गांव को इस हेड पम्प से क्या दुश्मनी थी कि इसने हमारे पूरे गांव को ही बीमार कर डाला...... .!'' मूसाखेड़ी ग्राम पंचायत के इस गांव में बने स्कूल में पहली से लेकर पाँचवी तक कक्षाये लगती है। सीवनपाट के स्कूल में पहली कक्षा पढऩे वाली पांच वर्षिय मनीषा आत्मज लालजी के दांत पीले क्यो है उसे पता तक नहीं ..... मँुह से बदबू आने वाली बात कहने वाली शिवकला आत्मज रामचारण कक्षा दुसरी तथा कंचन आत्मज शिवदयाल दोनो ही कक्षा दुसरी में पढ़ती है इनके भी दांत पीले पड़ चुके है। 6 वर्षिय प्रियंका आत्मज पंजाब कक्षा दुसरी , 7 वर्षिय योगिता आत्मज रियालाल कक्षा तीसरी की छात्रा है. इसी की उम्र की सरिता आत्मज मानक भी कक्षा तीसरी में पढ़ रही है उसके पीले दांत आने वाले कल के लिए समस्या बन सकते है। गांव की कविता आत्मज लालजी सवाल करते है कि ''साहब कल मेरी बेटी शादी लायक होगी तब उसे देखने वाले आदमी को जब पता चलेगा कि इसके दांत पीले है तथा उसके मँुह से बदबू आती है तब क्या वह उससे शादी करेगा....ï? '' विनिता आत्मज सुखराम कक्षा तीसरी की तथा कक्षा पांचवी की प्रमिला चैतराम भी अपने दांत दिखाते समय डरी - सहमी से सामने आती है। लगभग तीन घंन्टे तक इस गांव की पीड़ा को परखने गए इस संवाददाता को ग्रामिणो ने बताया कि 290 जनसंख्या वाले इस गांव में सबसे अधिक महिलायें 151 है. 139 पुरूष वाले लगभग 60 से 65 मकान वाले इस गांव में जुलाई 2006 को स्कूली मास्टरो से करवाये गये सर्वे के अनुसार इस गांव में 54 बालिकायें 44 बालक है जिनकी आयु 1 से 14 वर्ष के बीच है. इन 54 बालिकाओं में 49 के दांत पूरी तरह पीले पड़ चुके है। इसी तरह गांव की 151 महिलाओं में से 99 महिलाओं के दांत पीले है। शेष 52 महिलाओं की उम्र 45 से अधिक है जिनके दांतो पर उक्त फ्लोराइड़ युक्त पानी कोई असार नहीं कर सका है. जिला प्रशासन द्घारा लगभग 5 साल पहले ही उक्त फ्लोराइड़ युक्त पानी वाले हेड पम्प को बंद करवा कर उसके बदले में दो फ्लांग की दूरी पर एक हेड पम्प तो खुदवा दिया लेकिन उस हेडपम्प से भी फ्लोराइड़ युक्त पानी का निकलना जारी है क्योकि जिन लड़कियो की उम्र पाँच साल है जिनके दँुध के दांत टूट कर नये दांत उग आये है वे भी पीले पड़ चुके है। आंगनवाड़ी पढऩे वाली अधिकांश बालिकाओं के पीले दांत इस बात का जीता - जागता उदाहरण है कि गांव में टुयुबवेल से दिलवाये चार नल कनेक्शन से भी फ्लोराइड़ युक्त पानी निकल रहा है। दस वर्षिय सीमा आत्मज रमेश की माँ रामकला कहती है कि ''आज - नही तो कल जब मेरी लड़की को देखने को कोई युवक आयेगा तक क्या वह उसके पीले दांतो को देखने के बाद उससे शादी करने को तैयार हो जाएगा.....? '' गांव की मालती आत्मज जुगराम कक्षा दसवी तथा कविता आत्मज बिन्देलाल कक्षा 9 वी में पढऩे के प्रतिदिन कोलगांव आना - जाना करती है। इसी तरह सरिता कक्षा 7 वी में पढऩे के लिए बोरपानी गांव जाती है। गांव के कृष्णा आत्मज तुलाराम तथा गजानंद आत्मज राधेलाल की शिकायत पर वर्ष 2004 में बंद किये गये इस हेडपम्प के पानी से जहाँ एक ओर राजू आत्मज तोताराम भी विकलांगता की पीड़ा को भोग रहा है। वही दुसरी ओर गांव की फूलवंती आत्मज झुमरू , कला आत्मज चैतू तथा संगीता आत्मज गोररी की भी समस्या दांत के पीले पन से है। उन्हे इस बात की चिंता सता रही है कि कहीं उनका भावी पति उनके दांतो के पीलेपन तथा मँुह से आने वाली बदबू की व$जह से उनसे शादी करने से मना न कर दे। जब प्रदेश की विधानसभा तक मे फ्लोराइड युक्त पानी पर बवाल मचा तो बैतूल जिला कलेक्टर भी दौड़े - दौड़े उन गांवो की ओर भागे जिनके हेडपम्पो से फ्लोराइड युक्त पानी निकलता था। बमुश्कील आधा घन्टा भी इस की दहली$ज तक पहँुचे जिला कलेक्टर ने यहाँ - वहाँ की ढेर सारी बाते की लेकिन जब गांव कोटवार ने ही अपनी बेटी की विकलांगता की बात कहीं तो उसके इलाज की बात कह कर कलेक्टर महोदय चले गये ।
गांव के पंच संतराम , सुरतलाल , जुगराम , यहाँ तक की महिला पंच रामकली बाई भी कहती है कि ''साहब हमें नेता - अफसर नही चाहिये हमें तो ऐसा आदमी चाहिये जो कि हमारे दांतो का पीला पन दुर कर सके ताकि हम अपनी गांव की लड़कियो के हाथ आसानी से पीले कर सके........! '' गांव के हेडपम्प और टुयुबवेल से निकलने वाले फ्लोराइड़ युक्त पानी की व$जह सीवनपाट नामक आदिवासी बाहुल्य इस गांव की दुखभरी त्रासदी को सबसे पहले पत्रकारो ने ही जनप्रकाश में लाया लेकिन जिला प्रशासन की दिलचस्पी केवल उन्ही कामो में रही जिनसे कुछ माल मिल सके और यही माल कमाने की अभिलाषा जिले के तीन अफसरो को विधानसभा सत्र के दौरान सस्पैंड करवा चुकी है। लोक स्वास्थ यांत्रिकी विभाग के अफसरो का अपना तर्क है कि वह इस गांव के बारे में कई बार अपनी रिर्पोट जिला प्रशासन के माध्यम से राज्य सरकार तक भिजवा चुका है लेकिन इस गांव की समस्या से उसे कोई निज़ात नहीं दिलवा सका है। अब जब इस गांव की लड़की अपने हाथ पीले होने के इंतजार में बुढ़ापे की दहलीज पर पहँुच रही है तब जाकर मध्यप्रदेश की वर्तमान राज्य सरकार ने यह स्वीकार किया है कि बैतूल जिले के कुछ गांवो में पोलियो की व$जह इन गांवो के लोगो द्घारा पीया जाने वाला फ्लोराइड़ युक्त पानी है। निर्धारित मापदण्ड से अधिक मात्रा वाले फ्लोराइड के पानी का पेयजल के रूप में लगातार सेवन करना बच्चों, महिलाओं, युवाओं, बुजुर्गो, गर्भवती महिलाओं सहित सभी के लिए अत्यधिक नुकसानदायक है और इसके दुरगामी परिणाम शरीर पर होते है जिसके चलते दात, हड्डïी, पर्वस सिस्टम और किडनी पर असर पड़ता है। यह बात प्रसिद्घ अस्थि रोग विशेषज्ञ डॉ.योगेश गढ़ेकर से विशेष चर्चा में कही।
कर्ज में बिदा हो रही हो रही बेटियां
जेब में फूटी कौड़ी नहीं और चले कन्यादान करने
सदियो से चला आ रहा है कि हर बाप को अपनी बेटी की शादी के लिए कर्जा लेना पड़ता हैै। बाप बेटी की शादी के लिए कर्जा ले यहाँ तो सहीं पर क्या सरकार को भी अपनी मुख्यमंत्री कन्यादान योजना के लिए कर्जा लेना पड़ा हैै...! यह बात तो उसी मुहावरे को परिभाषित करती है कि ''घर में दाना नहीं और देने चले पूरे गांव को दावत...!'' मध्यप्रदेश के उस आदिवासी बाहुल्य बैतूल जिले में जहाँ पर भाजपा अभी 15 दिन पहले ही लोकसभा चुनाव जीती है वहाँ पर मुख्यमंत्री कन्यादान योजना के लिए जिले की दसो जनपदो के पास पैसा का अकाल पड़ा है। बीते वर्ष मुख्यमंत्री कन्यादान योजना के लिए 1467 दुल्हनो का कन्यादान किया गया था। इस कार्यक्रम के लिए 88 लाख दो हजार रूपये खर्च हुये थे। सरकार ने मात्र 65 लाख रूपये दिये जबकि 23 लाख रूपये जनपदो ने मुख्यमंत्री कन्यादान योजना के लिए निराश्रित फण्डके लिए आया रूपैया खर्च कर डाला। बीते एक साल से बैतूल जिले की सभी जनपदो को पंचायत एवं सामाजिक न्याय विभाग उन 23 लाख रूपयो के लिए कई बार पत्राचार करके उक्त कर्ज बतौर ली गई राशी को बिना ब्याज के मूलधन के रूप में वापस करवाने के लिए आवेदन - निवेदन कर चुका हैै। जहाँ एक ओर बाप अपनी बेटी का कर्ज जीवन भर नही चुका पाता है जिसके चलते उसे कन्या बोझ लगने लगती है लेकिन इस त्रासदी को देख कर तो अब यह लगने लगा है कि सरकार भी कन्यादान के चक्कर में भारी कर्ज में डूबी चली जा रही हैै। आम तौर पर शादी - विवाह या किसी भी काम के लिए कर्ज देने वाला कर्ज लेने वाले से स्टाम्प पेपरो से लेकर बहँुत कुछ अपने पास गिरवी रख लेता है लेकिन बेचारा सामाजिक न्याय विभाग को कर्ज का ब्याज तो दूर निराश्रितो के कल्याण के लिए आया 23 लाख रूपैया वापस लेने क लिए एक साल से जिले की जनपदो क चक्कर लगाने पड़ रहे हैै। अब लगता है कि सामाजिक न्याय विभाग को अपने मूलधन की प्राप्ति के लिए किसी बिचौलिये की शरण लेनी पड़ेगी ताकि उन रूपयो से निराश्रितो का कल्याण करा सके ।
इस वर्ष भी बीते कल 30 अप्रेल को 167 कन्याओं का सामुहिक कन्यादान जिले के पालक मंत्री ने किया लेकिन उसके लिए खर्च किया गया रूपैया भी पिछली बार की तरह अन्य विभाग से कर्ज लेकर किया गया। जिले को बीते वर्ष का कर्ज सहित इस बार के लिए 90 लाख रूपैया चाहिए लेकिन जिला पंचायत विभाग के पास दस जनपदो को देने के लिए दस पैसा भी नही है। बैतूल जिले में इस बार भी एक हजार से ऊपर गरीब , अनुसूचित जाति , जनजाति ,अल्पसंख्यक , पिछड़ा वर्ग की कन्याओं के कन्यादान करने के पीछे की मंशा में कहीं न कहीं आने वाले माह में होने वाला विधानसभा चुनाव काफी महत्व रखता है। कर्ज लेकर कन्यादान करने की प्रदेश सरकार की मंशा कहीं उसे कर्ज के बोझ में इतनी न डाल दे कि उसकी अन्य विभागो की अति महत्वपूर्ण योजनाये ठण्डे बस्तें में चली जाये।
मजाक बन गई मुख्यमंत्री की कन्यादान योजना
शादी के मण्डप में ललना को दुध पिलाती माँ ने लिये सात फेरे
मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री की महत्वाकांक्षी योजनाओं का क्या हश्र हो रहा है स्वंय मुख्यमंत्री इस बात से परिचीत है। बैतूल में स्वंय मुख्यमंत्री इस बात को स्वीकार कर चुके है कि कन्यादान योजना का लाभ लेने के लिए ऐसे लोग भी फेर ले रहे है जो कि दो - दो बच्चो के माता - पिता है। इसी बैतूल में जहाँ एक ओर बीते माह सम्पन्न कन्यादान कार्यक्रम में भाग लेने आयी एक युवती ने सात फेरो के दौरान ही अचानक हुई प्रसव पीड़ा के बाद एक स्वस्थ कन्या को जन्म दिया। वही दुसरी ओर गरीब - कमजोर - असहाय - मजदुर वर्ग के सभी जाति वर्गो के लोगो के लिए शुरू की गई राज्य सरकार की मुख्यमंत्री कन्यादान योजना में मिलने वाले दहेज के चक्कर में लोग घन चक्कर बन रहे है। हाल ही में बैतूल जिले के युवा सासंद महोदय की उपस्थिति में ज्यादा से ज्यादा कन्याओ का कन्यादान करवाना था तब अधिकारियो ने अपनी बहुचर्चित धारा 40 का डर बता कर शाहपुर जनपद क्षेत्र की ग्राम पंचायतो से इतनी कन्याओं को सुहागन के रूप बुलवाया लिया कि दर्जनो को बैंरग बिना फेरे लगाये ही अपने घरो को वापस लौटना पड़ा। जिले के नवनिर्वाचित सासंद एवं जिला कलैक्टर की मौजूदगी में शाहपुर जनपद क्षेत्र में लगे विशाल पण्डाल के नीचे 107 जोड़ो का कन्यादान हुआ। इस कार्यक्रम में निशाना के इन्द्रपाल और उसकी पत्नि बबली जो कि स्वंय ग्राम पंचायत पंच है ने अपने पति के साथ अपनी शादी के एक साल बाद दुबारा सात फेरे लिये। इसी तरह पाठई के दीनालाल भंगी ने अपनी पत्नि कुमकुम को एक बार फिर कुमकुम लगाया उसकी मांग भरी और सात फेरे लगाये। लोगो को दुबारा और तीबारा शादी के सात फेरे लगाता देख भंला घाटली इटारसी के दुलीचंद कहा रूकने वाले थे उसने भी अपनी अनिता से एक बार फिर बहती गंगा में हाथ धोने के बजाय डुबकी लगाना उचित समझा। लोगो का सारा ड्रामा देख कर अपने साथ किराये के ट्रेक्टर में 11 जोड़ो को लेकर आई आदिवासी महिला सरपंच श्रीमति रामदती भला कहा चुप रहने वाली थी उसने वहीं पण्डाल में लोगो की पोल खोल कर रख दी। ग्राम पंचायत रामपुर माल की इस महिला सरपंच को हंगामा करता देख ग्राम पंचायत टांगना माल के पंच किशन लाल विश्वकर्मा से रहा नहीं गया और उसने भी तपे लोहा पर अपना हथौड़ा दे मारा। किशल लाल का कहना था कि उसने भी ट्रेक्टर ट्राली में 10 जोड़ो को लाया था। इस भीड़ जुटाने और अधिक से अधिक कन्यादान के चक्कर में अब साथ लाई दुल्हनो को दहेज का सामान तो दूर रहा टे्रक्टर वाले को किराया कहां से देगा। उसने सोचा था कि कन्यादान में से वह कुछ टे्रक्टर वाले को देकर खुद भी बहती गंगा में नहा लेगा। जहाँ एक ओर इस कार्यक्रम में 71 जोड़ो को दुल्हन बनने के बाद बिना फेरे लिये बैरंग लौटना पड़ा वही दुसरी ओर दो दर्जन से अधिक जोड़ो ने दुबारा - किसी ने तीबारा सात फेरे लगा कर सरकारी माल को हड़पने का कार्य किया। इस बारे में मुख्य कार्यपालन अधिकारी शाहपुर जनपद का सीधा सरल जवाब है कि अब दुल्हन बनी हर युवतियो से पुछने से तो नहीं रहे कि उसकी इसके पहले भी कहीं शादी हुई है या नहीं....? सवाल यहां उठता है कि युवतियो ने नहीं पुछा जा सकता पर आँख से अंधे बनें अफसरो को यह नही दिखाई दिया कि कलावति या रामकली शादी के मण्डप में दुल्हन बनी अपने बच्चो को दुध पिला रही है। संगीता ने तो अपनी गोदी में उसके दुध मँुहे बेटे अमर के साथ ही सात फेरे ले लिये। सारे लोग नजारा देख रहे कि एक मां अपने बच्चे के साथ सात फेरे लगा रही है। जब इस ओर सासंद का ध्यान दिलवाया तो उन्होंने कलैक्टर की ओर मुड कर देखा ... कलैक्टर ने मुख्य कार्यपालन अधिकारी और इस अधिकारी ने सरपंच की ओर देखा। तीनो - चारो एक दुसरे को देख कर मुस्करा कर रह गये। मध्यप्रदेश राज्य सरकार की कन्यादान योजना का इतना बुरा हश्र देखने के बाद भी जिला प्रशासन सवार्धिक जोड़ो का कन्यादान करवाने के लिए स्वंय की पीठ थप - थपाये तो इससे बड़ी शर्मनाक बात और क्या होगी।
मामा के राज में बारह वर्षिय आदिवासी भांजे लाश
की अठारह घंटे पोस्टमार्टम का इंतजार करती रही
मध्यप्रदेश की भाजपा सरकार और उसकी सरकारी मिश्ररी प्रदेश के गरीब - आदिवासी और पिछड़े वर्ग के प्रति कितनी संवेदनशील है इसका नजारा हाल ही में देखने को मिला। आदिवासी बाहुल्य बैतूल जिले के सारनी ताप बिजली घर से निकलने वाली राख युक्त पानी से बने राखड़ नाले के समीप खखरा ढाना निवासी रतन लाल धुर्वे के बारह वर्षिय पुत्र रामलाल की बिजली के करंट लगने से मौत हो गई। मृतक के परिजन उसकी सूचना पुलिस को देकर उसकी लाश का पोस्टमार्टम करने के लिए सारनी थाना अन्तगर्त आने वाले पाटाखेड़ा स्थित उप प्राथमिक स्वास्थ केन्द्र में घटना के दिन शाम 5 बजे टे्रक्टर - ट्राली में लेकर आ गये थे लेकिन उप स्वास्थ के केन्द्र के प्रभारी चिकित्सा अधिकारी ने मृतक बच्चे का शाम 5 बजे से लेकर दुसरे दिन 18 घंटे तक पोस्टमार्टम नहीं किया। इस बात की जानकारी कुछ जागरूक लोगो को पता चली तो उन्होने ने उप स्वास्थ केन्द्र प्रभारी की परेड़ ली तब जाकर मृतक का पोस्टमार्टम हुआ। दिन भर टे्रक्टर ट्राली में पड़ी एक अबोध बालक की लाश की इस र्दुदशा पर समाजवादी पार्टी के युवा प्रकोष्ठï के नेता विनोद जगताप ने इस घटना की निंदा करते हुये आरोप लगाया कि भाजपा सरकार संवेदनाहीन हो गई है। श्री जगताप का आरोप है कि उस समय उप स्वास्थ केन्द्र में मौजूद चिकित्सक ने मृतको के परिजनो से पोस्टमार्टम करवाने के नाम पर रूपयो के लेन - देने न होने पर पाटाखेड़ा से रानीपुर चले गये लेकिन उस अबोध बालक का पोस्टमार्टम नहीं किया।
इन सारी घटनाओं के बाद कलयुगी प्रदेश की लाखो बहनो के भैया और बेटे - बेटियो के मामा शिवराज सिंह को इस समाचार रूपी आईन में अगर अपनी योजनाओं के दु:ष परिणामो की सूरत बदï्सूरत लगे और वह आइना ही तोड़ देते तो आइने का क्या दोष होगा।
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